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________________ .. (१३) . परन्तु ‘प्रवचन सारोद्धार वृत्ति' और 'संग्रहणी वृहत् वृत्ति' में 'उत्तर कुरु क्षेत्र के युगलियों के केशाग्र' का उल्लेख नहीं किया, सामान्य रूप में केशाग्र' इतना ही कहा है। वीर जय सेहर क्षेत्र विचार' की स्वोपज्ञ टीका में - देव कुरु और उत्तर कुरु क्षेत्र में जन्मे हुए सात दिन के भेड़ के बाल का उल्लेख किया है। उसके उत्सेधांगुल के प्रमाण के सात रोम करके, उस रोम को दलते बीस लाख सत्तासी हजार एक सौ बावन टुकड़े हों तब उस रोम खंडों-केशाग्र द्वारा उस कुएं को भरना। ऐसे बाल के टुकड़े एक हाथ में चौबीस गुना समा जाते हैं, इससे चौगुना एक धनुष्य में समा जाते हैं, और इससे भी दो हजार गुना एक कोश में समा जाते हैं । त्रयस्त्रिंशत्कोटयः स्युः सप्तलक्षाणि चोपरि । द्वाषष्टिश्च सहस्राणि शतं च चतुरुत्तरम् ॥७४।। एतावत्यः कोटि-कोटि कोटा-कोटयः स्मृता अथ। चतुर्विंशतिर्लक्षणि पंञ्चषष्टिः सहस्रकाः ॥७५।। पञ्च विशाः शताः षट् च स्युः कोटा कोटि कोटयः । कोटा कोटीनां च. लक्षा द्विचत्वारिंशदित्यथ ॥७६॥ एकोन विंशतिरपि सहस्राणि शता नव । षष्टिश्चोपरि कोटीनां मानमेवं निरूपितम् ॥७७॥ लक्षाणि सप्तनवतिस्त्रिपञ्चाशत्सहस्रकः । षट्शतानि च पल्येऽस्मिन् स्युः सर्वे रोमखण्डकाः ॥७८॥ पंचभि कलापकम् । इस तरह कुएं में भरे हुए केशाग्र की संख्या तैंतीस करोड़, सात लाख बासठ हजार और एक सौ चार - इतनी कोटा कोटी - कोटा कोटी, चौबीस लाख पैंसठ हजार और छह सौ पचीस - इतना कोटा कोटी कोटी, बयालीस लाख कोटा कोटी, उन्नीस हजार नौ सौ साठ करोड़ तथा सत्तासी लाख तिरपन हजार व छह सौ होता है। इसकी संख्या अंक से लिखे तो इस तरह संख्या बनती है- ३३०७६२१०४४ ४६५६२५ ४२ १६६६०६७५३६००००००००० । इस तरह रोम खण्ड पल्योपम के होते हैं । (७४ से ७८) त्रित्रिखाश्वर साक्ष्या शावाद्धर्यक्ष्यब्धि र सेन्द्रियम् । षट् द्वि पञ्च चतुद्वर्यैकां कांकषट् खांक वाजिनः ॥७६॥ पञ्च त्रीणि च षट् किञ्च नव खानि ततः परम् । आदितः पल्यरोमांश राशि संख्यांक संग्रहः ॥८०॥ युग्मम्
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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