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जिनकी कीर्ति श्रवण करके सारा विश्व आश्चर्य में लीन हो गया है ऐसे श्रीमान् कीर्ति विजय उपाध्याय भगवन्त के अन्तेवासी शिष्य और माता राजश्री तथा पिता तेजपाल के पुत्र रत्न श्री विनय विजय उपाध्याय ने जो इस जगत् के निश्चित तत्त्व को दीपक के समान प्रकाश में लाने वाले काव्य ग्रंथ की रचना की है। उनका सुभग अर्थ परम्परा से झरता छठा सर्ग विघ्न रहित समाप्त हुआ है। (१६८)
छठा सर्ग समाप्त