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यह देह द्वार है। (६) संमूच्छिमानां संस्थानं हुडमेकं प्रकीर्तितम् । गर्भजानां यथायोगं भवन्ति निखिलान्यपि ॥१३६॥
इति संस्थानम् ॥१०॥ अब इनका संस्थान कहते हैं- संमूर्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय की केवल एक हुंडक संस्थान होता हैं, गर्भज का जैसा योग हो उस तरह से सर्व संस्थान होते हैं । (१३६)
यह संस्थान द्वार है । (१०) संमूर्छि मानामुत्कृष्टं शरीरं जलचारिणाम् ।। सहस्रं योजनान्येतन्मत्स्यादीनामपेक्षया ॥१४०॥
अब देहमान कहते हैं- इसमें जो संमूर्छिम जलचर जीव हैं उनका देहमान उत्कृष्ट से एक हजार योजन होता है । यह मान मछली आदि की अपेक्षा से समझना। (१४०)
चतुष्पदानां गव्यूत पृथकत्वं परिकीर्तितम् । - भुजगानां खगानां च कोदंडानां पृथकत्वकम् ॥१४१॥
जो चतुष्पद जीव है उसका देहमान पृथकत्व कोश का है । भुज परिसर्प तथा खेचर का पृथकत्व धनुष्य का है, उरग का पृथकत्व योजन का है। (१४१) ....योजनानां पृथकत्वं चोरगाणां स्याद्वपुर्गुरु ।
गर्भजानां वाश्चराणां संमूर्छिमाम्बुचारिवत् ॥१४२॥ ... चतुष्पदानां गव्यूत षटकं भुजग देहिनाम् ।
गव्यूताना पृथकत्वं स्यादुत्कृष्टं खलु भूधनम् ॥१४३॥ तथोरः परिसणां सहस्रयोजनं वपुः । यतोऽनेक विधा उक्ता एतज्जातौ महोरगाः ॥१४४॥ अंगुलेन मिताः केचित्तत्पृथक्त्वांगकाः परे ।
केचित्क्रमाद्वर्धमानाः सहस्त्रयोजनोन्मिताः ॥१४५॥ .. अब गर्भज में जो जलचर जीव हैं उनका उत्कृष्टतः देहमान संमूर्छिम जलचर के समान ही है । चतुष्पद का छ: कोस का है । भुजपरिसर्प का पृथकत्व कोस का है और उरपरिसर्प का एक हजार योजन का है क्योंकि इस जाति में अनेक