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में जन्म- मरण की संख्या एक, दो, तीन बार, आखिर में तो संख्य तक और इससे भी विशेष असंख्यात हो सकती है। (३३)
ये गति आगति द्वार है । (१३-१४)
लब्ध्या नृत्वादि सामग्री केचिदासादयन्त्यमी । . यावद् दीक्षां भवे गम्ये न तु मोक्षं स्वभावतः ॥३४॥ .
इति अनन्तराप्तिः ॥१५॥ विकलेन्द्रिय जीव मनुष्यत्व आदि सामग्री के योग से अनन्तर भव में यावत् सर्व विरति रूप दीक्षा प्राप्त कर सकता है, परन्तु स्वभावत: मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता है। (३४)
यह अन्तराप्ति द्वार है। (१५) एकस्मिन् समये सिद्धिर्विकलानां न सम्भवेत् । ग्रामो नास्ति कृतः सीमा मोक्षी नास्तीति सा कुत ॥३५॥
इति एक समय सिद्धिः ॥१६॥ विकलेन्द्रिय जीव को मोक्ष ही नहीं है अतः एक समय सिद्ध के समान कुछ नहीं रहता क्योंकि गांव के बिना सीमा किस तरह हो सकती है? (३५)
यह एक समय सिद्धि द्वार है। (१६). , कृष्ण नीला च कापोतीत्येषां लेश्या त्रयं स्मृतम्। ..
इति लेश्या ॥१७॥ त्रसनाड्ड्यन्तरे सत्त्वादाहारः षड्दिगुद्भवः ॥३६॥ .
इति आहारादिक् ॥१८॥ विकलेन्द्रिय जीव की लेश्या तीन होती हैं - १. कृष्ण, २. नील और ३. कपोत।
यह लेश्या द्वार है। (१७)
ये जीव त्रस नाड़ी के अन्दर होने से इनको छः दिशाओं का आहार होता है । (३६)
यह आहारादिक द्वार है। (१८)