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________________ (४११) एषां त्रयः समुद्घाता आद्याः स्युर्वेदनादयः । क्षमादीनां तेऽनिलानां तु चत्वारः स्यु सवैक्रियाः ॥२६२॥ • इति समुद्घातः ॥२॥ अब समुद्घात के विषय में कहते हैं - इन पृथ्वीकाय आदि जीवों को वेदना आदि प्रथम तीन समुद्घात होते हैं, और वायुकाय जीवों को ये तीन और चौथा वैक्रिय, इस तरह चार समुद्घात होते हैं। (२६२) यह बारहवां समुद्घात पूर्ण हुआ। (१२) बादरक्षिति नीराणि प्रत्येकान्यद्रुमा अपि । मृत्वोत्पद्यन्तेऽखिलेषु तिर्यक्ष्वेकेन्द्रियादिषु ॥२६३॥ पंचाक्षेष्वपि तिर्यक्षु गर्भसंमूर्छ जन्मसु । ... नरेष्वपि द्वि भेदेषु संख्येयायुष्कशालिषु ॥२६४॥ युग्मं । - अब गति के विषय में कहते हैं- बादर पृथ्वीकाय, अप्काय तथा प्रत्येक. और साधारण वनस्पति-इन सब जीवों की मृत्यु के बाद एकेन्द्रिय आदि सर्व तिर्यंच में, गर्भज तथा संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच में तथा संख्यात् आयुष्य वाले दोनों प्रकार के मनुष्य में उत्पन्न होते हैं। (२६३-२६४) . . गच्छतो वह्निवायू तु सर्वेष्वेषु नरान्विना । - ततः पूर्वे द्विगतयोऽमूत्वेक गति को स्मृतौ ॥२६॥ इति गतिः ।।१३॥ तथा अग्निकाय और वायुकाय के जीव मनुष्य गति के सिवाय उपयुक्त सर्व गति में जाते हैं । इस तरह होने से पूर्वोक्त जीवों की दो गति हैं और यों तो एक ही गति है। (२६५) ऐसा गति का स्वरूप है। (१३) एकद्वित्रिचतुरक्षाः पंचक्षाः संख्य जीविनः । तिर्यचो मनुजाचैव गर्भ संमूर्छनोद्भवाः ॥२६६॥ अपर्याप्ताश्च पर्याप्ताः सर्वेऽप्येते सुरास्तथा । .. भवन व्यन्तर ज्योतिष्काघकल्प द्वयोद्भवाः ॥२६७॥ मृत्वा प्रत्येक विटपिबादर क्षितिवारिषु । आयान्ति तेषु देवास्तु पर्याप्तेष्व परेषु न ॥२६८॥ त्रिभिर्विशेषं ।
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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