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________________ (४०४) स्कन्ध शाखात्वचासु स्यात् गव्यूतानां पृथक्त्वकम्। अंगुलानां पृथक्त्वं च सा भवेत्फल बीजयोः ॥२६७॥ इनके स्कंध, शाखा और छिलके की अवगाहना पृथकत्व गव्यूत प्रमाण है, और फल तथा बीज की अवगाहना पृथकत्व अंगुल है। (२६७) तालादीनां च मूलादि पंचकस्य स्थितिर्गुरुः । दस वर्ष सहस्राणि लघ्वी चान्तर्मुहूर्ति की ॥२६८॥ .. और इनके मूल आदि पांचों की उत्कृष्ट स्थिति दस हजार वर्ष की है और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण की है। (२६८) प्रवालादि पंचकस्य त्वेषामुत्कर्षतः स्थितिः । नव वर्षाणि लघ्वी तु प्राग्वदान्तर्मुहूर्तिकी ॥२६६॥ तालादयश्च तालेतमाले इत्यादि गाथा युग्मतः ज्ञेयाः॥ तथा इनके प्रवाल आदि पांच की स्थिति उत्कृष्टतः नौ वर्ष की है और जघन्यतः पूर्व के समान अन्तर्मुहूर्त है। (२६६) . यहां ताड़ आदि जो कहा है वह ताले तमाले इत्यादि दो गाथा पूर्व इसी सर्ग के अन्दर १३६-१४०वीं गाथा में कह गये हैं, उससे जान लेना। एकास्थिक बहुबीजक वृक्षाणामाप्रदाडिमादीनाम्। मूलादेः दशकस्यावगाहना तालवस्थितिश्चापि ॥२७०॥ अब एक बीज वाले आम वृक्ष तथा बहुबीज वाले अनार वृक्ष आदि के मूल-जड़ आदि दसों की अवगाहना तथा स्थिति ताड़ वृक्ष के समान समझना। (२७०) गुच्छानां गुल्मानां स्थितिरुत्कृष्टावगाहना चापि । शाल्यादिवदवसेया वल्लीनां स्थितिरपि तथैव ॥२७१॥ और गुच्छ और गुल्म की उत्कृष्ट स्थिति और अवगाहना तथा वल्ली की स्थिति- ये सब शाल आदि वृक्षों के समान जानना। (२७१), वल्लीनां च फलस्यावगाहना स्यात्पृथकत्वमिह धनुषाम् । . शेषेषु नवसु मूलादिषु ताल प्रभृति वद् ज्ञेया ॥२७२॥ और वल्ली के फल की अवगाहना पृथकत्व धनुष्य की जानना, शेष मूल आदि नौ की अवगाहना ताल वृक्ष के समान समझना। (२७२)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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