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________________ (३८०) वहां इस प्रकार से कहा है- 'कुहण क्या है ? कुहण अनेक प्रकार का होता है। इसके वर्णन के अनुसार उसका रंग होता है । इसी प्रकार से अलग-अलग तरह का कुहण होता है । इत्यादि ।' _ गुच्छादीनां च मूलाद्या अपि षट् संख्य जीवकाः।. सूत्रे हि वृक्ष मूलादेरेवोक्ताऽसंख्य जीवता ॥१३३॥ .. गुच्छ आदि का मूल आदि छुपे हुए संख्यात् जीव वाला होता है। सूत्र में वृक्ष मूलादि को ही असंख्य जीवों वाला कहा है। (१३३) तथोक्तं वनस्पति सप्ततौरूख्खाणमसंखजिआ मूला कंदा तया य खंधा य। . .साला तहा पवाला पुढो पुढो हुंति नायव्वा ॥१३४॥ गुच्छाईणं पुण संख जीवया नन्नये इमं पायम् । . रूखाणं चिटा जमसंख जीव भावो सुए भणिओ ॥१३५॥ . तथा वनस्पति सप्ततिका में कहा है कि वृक्ष का मूल, कंद, छिलका, स्कंध, शाखा तथा प्रवाल; इनके विषय में अलग-अलग प्रत्येक के अन्दर असंख्य जीव है, गुच्छ आदि में प्रायः संख्यात जीव हैं और वृक्ष आदि में असंख्य जीव हैं। इस प्रकार सूत्र में कहा है। (१३४-१३५) . . अत्रायं विशेष:- तालश्च नालिकेरी च सरलश्च वनस्पतिः ।.... एक जीव स्कन्ध एषां पत्र पुष्पादि सर्ववत् ॥१३६॥ इसमें इतना विशेष है कि- ताड़, नारियल और सरलं वनस्पति के स्कंध में एक जीव है; इसके पत्र, पुष्प आदि में सर्व के समान हैं। (१३६) तथा .....पंचमांगे विधा वृक्षाः प्रज्ञप्ता गणधारिभिः ।। अनन्तासंख्य संख्यात जीवकास्ते क्रमादिमे ॥१३७॥ तत्राद्याः शृंगवेराद्याः कपित्यानादिकाः परे । .. संख्यात जीवका ये च ज्ञेया गाथा द्वयेन ते ॥१३॥ तथा पांचवें अंग भगवती सूत्र में गणधर के कहने के अनुसार तीन प्रकार के वृक्ष हैं; १- अनंत जीव वाले, २- असंख्य जीव वाले और ३- संख्यात जीव वाले। इसमें शृंगवेर आदि प्रथम प्रकार का है; कपित्थ, आम वृक्ष आदि दूसरे के प्रकार हैं,
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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