SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (xxxv ) मार्ग की आराधना करके मुक्ति पथ का पथिक बनता है। ग्रन्थराज सम्पूर्ण पाँचो भागों में छप चुका है । अपनी अनुकूलता अनुसार पाठक गण प्राप्त कर पठन-पाठन करेगें तो कल्याण होगा। ___ 'द्रव्य क्षेत्र' नाम से प्रसिद्ध लोक प्रकाश' ग्रन्थ का प्रथम भाग (सर्ग १ से ११ तक) आपके हाथों में हैं । वर्ण्य विषय की अनुक्रमणिका इस प्रन्थके प्रारम्भिक पृष्ठों पर दी गई है, इससे विषयअन्वेषन में सुविज्ञ पाठक जन को सुविधा होगी । इस ग्रन्थ का विषय यद्यपि दुरुह है फिर भी सूक्ष्मति सूक्ष्म विचार पूर्ण रूप से जैन शैली के अनुरूप हैं । भाषानुवाद में मेरी मतिमंदता अथवा कथंचित् प्रमाद वश कहीं कोई स्खलना रही है तो मिच्छामि दुक्कडं करोमि"। सुहय एवं सुविज्ञजन विचार सहित अध्ययन करें। कहा भी है कि - अवश्यं भाविनो दोषाः, छद्यस्थत्वानुभावतः। समाधितन्वते सन्तः, किंनराश्चात्र वक्रगा ॥ गच्छतः स्खलनं कवापि, भवत्येव प्रमादतः । हसन्ति दुर्जनास्तत्र, साधयन्तिं सजेनाः ॥ शिवं भवतु-सुखं भवतु-कल्याणं भवतु आचार्य पद्म चन्द्र सूरि का धर्म लाभ
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy