SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( xxxiii) . क्र० विषय श्लोक | क्र० विषय श्लोक | सं० , सं० | सं० सं० ५ कर्म के मुख्य आठ प्रकार, उतर २ स्कंध-देश-प्रदेश और परमाणुओं प्रकृतियाँ १४६ ।। के लक्षण ६ नाम कर्म की प्रकृतियाँ १६७ | ३ परमाणु का स्वरूप, इसके चार ७ आठ प्रकार के कर्म की उत्कृष्टता | प्रकार १४ तथा जघन्य स्थिति २६५ | ४ पुदगलों का दश प्रकार का ८ कर्मो के अबाध काल और परिणाम (बँध परिणामआदि) २२ कर्मों के निषेक और व्याख्या २७८ | ५ इन दशं में से तीसरे प्रकार ६ जीव की पुण्य प्रकृतियाँ और (संस्थान-परिणाम) ४८ पाप प्रकृतियाँ .२६२ | ६ संस्थान-परिणाम के अनेकों १० घाती और भवोपग्राही (अघाती) । भेद-प्रभेद ३०० / ७ संस्थान परिणाम की आकृतियाँ ६७ . ग्यारहवां सर्ग . ८ पुदंगल का अन्य परिणाम ११३ पुदगलास्ति काय का स्वरूप; . ६. अजीव रूपी पुदगलों का ५३० . इसके पाँच प्रकार भेद १३० १०. शब्द परिणाम १३६ ११ छाया आदि पौदगलिक है १३ १२ सर्ग समाप्ति कर्म रि . . १५८
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy