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समकालं प्रपन्ननां गुणस्थानमिदं खलु । बहुनां भव्य जीवानां वर्त्तते यत्परस्परम् ॥११८५॥
समकाल में इस गुण स्थान में पहुँचे हुए अनेक भव्य जीवों को ये छ: स्थान वलय- परस्पर वर्तन वाले होते हैं। (११८५)
उक्त रूपाध्यवसाय स्थान व्यावृत्ति लक्षणा । निवृत्तिस्तन्निवृत्त्याख्यमप्येतत्कीर्त्यते बुधैः ॥११८६॥
इति अष्टमम्॥
इस तरह जिसका स्वरूप है वह इस गुण स्थान में अध्यवसाय स्थानों की व्यावृत्ति रूप लक्षण वाली 'निवृत्ति' कहलाती है। इसलिए इस गुण स्थान को बुद्धिमान 'निवृत्ति गुण स्थान' भी कहते हैं। (११८६)
इस प्रकार आठवां गुण स्थान समझना । तथा..... परस्पराध्यवसाय स्थान व्यावृत्ति लक्षणा ।
निवृत्तिर्यस्यनास्त्येषोऽनिवृत्ताख्योऽसुमान. भवेत् ॥११८७॥ तथा परस्पर अध्यवसारा स्थानों की व्यावृत्ति रूप लक्षण वाली निवृत्ति जिसको नहीं है वह प्राणी अनिवृत्त कहलाता है । (११८७)
तथा किट्टी कृत सूक्ष्म सम्पराय व्यपेक्षया । स्थूलो यस्यास्त्यसौ स स्याद् बादर संपरायकः ॥११८८॥
और किट्टी रूप किए सूक्ष्म संपराय की अपेक्षा से जिसे यह कषाय स्थूल अर्थात् बादर हो वह प्राणी 'बादर संपराय' वाला कहलाता है। (११८८)
ततः पदद्वयस्यास्य विहिते कर्म धारये । स्यात्सोऽनिवृत्ति बादर संपरायाभिधस्ततः ॥११८६॥
अनिवृत्त और बादर संपराय इन दोनों पदों का कर्मधारय समास करने से 'अनिवृत्ति बादर संपराय' इस तरह विशेषण होता है । (११८६)
तस्यानिवृत्ति बादर सम्परायस्य कीर्तितम् । गुण स्थानम् निवृत्ति बादर सम्परायकम् ॥११६०॥
अनिवृत्त बादर सम्पराय प्राणी का यह गुण स्थान अनिवृत्त बादर सम्पराय गुण स्थान कहलाता है।