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________________ (२३५) अत्यन्त सूक्ष्म 'पनक' होता है। इस तरह तीन समय में उसकी जितनी अवगाहना होती है, उतना अवधि ज्ञान का आलम्बन भाजन रूप जघन्य क्षेत्र है। यह बात इसी तरह ही है। इसी प्रकार मुनिगण सम्प्रदाय को लेकर समझना। (८६६ से ८६८) तथा....मच्छो महल्ल काओ संखित्तो जोऊ तीहिं समए हिं। स किरपयत्त विसेसेण सहभोगाहणं कृणइ ॥१॥ वह इस प्रकार से है- अत्यन्त बड़ी अवगाहना वाली मछली मृत्यु होने के समय में वहीं उत्पन्न होने वाली हो, वह प्रयत्न विशेष से तीन समय द्वारा संक्षिप्त करके अपनी आवगाहना अत्यन्त सूक्ष्म करती है। (१) सहयस सहयरो सुहुमो पणओ जहन्न देहो य । स बहु विसेस विसिट्ठो सहयरो सव्वदेहेसु ॥८६६॥ पढम बितीये सण्हो जायइथूलो चउत्थ या इसु । तइय समयंमि जुग्गो गाहिओ तो तिसमयाहारो ॥६००॥ सूक्ष्म करते भी सूक्ष्म जघन्य देह वाला सूक्ष्म पनक 'सूक्ष्म वनस्पति काय' होता है, वह अति विशेषता द्वारा विशिष्ट सर्व देह में अपने सूक्ष्म देह करता है । वह जीव उत्पन्न होने के बाद पहले और दूसरे समय में सूक्ष्म होता है और चौथे आदि समय में स्थूल हो जाता है, इससे यहां अवधि ज्ञान के जघन्य उपयोग में तीन समय वाला योग्य है । इसलिए तीन समय का आहार लिए हुए को सूक्ष्म पनक समझना । उसकी जितनी अवगाहना होती हो उतनी अवधि ज्ञान का जघन्य विषय जानना । (८६६-६००) • अलोके लोक मात्राणि पश्येत् खंडान्यसंख्यशः । उत्कृष्टतोऽवधि ज्ञान विषयः शक्त्यपेक्षया ॥६०१॥ अवधि ज्ञानी निज शक्ति के अनुसार उत्कृष्ट रूप में अलोक के विषय में लोकाकाश सदृश असंख्य खंडों को देख सकता हैं। (६०१) असंख्य भागमावल्या जघन्यादेष पश्यति । उत्सर्पिण्यवसर्पिणीः उत्कर्षेणत्वसंख्यकाः ॥६०२॥ अतीता अपि तावत्यस्तावत्योऽनागता अपि । तावत्काले भूत भावि रूपि द्रव्यावबोधतः ॥६०३॥ तथा काल से वह जघन्यता से एक आवली का असंख्यवां भाग जान
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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