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________________ (२१३) इह च शिरः कम्पनादि चेष्टानां पराभिप्रायज्ञान हेतुत्वे सत्यपि श्रवणाभावान श्रुतत्वम्॥ यहां मस्तक हिलाना आदि चेष्टाएं जो कि दूसरे के अभिप्राय को जानने में हेतुभूत हैं; फिर भी वे चेष्टाएं किसी को सुनाई नहीं देतीं इससे उनमें श्रुतत्व नहीं है। तदुक्तं विशेषावश्यक सूत्र वृत्तौ- "रूटीइतं सुअं सुच्च इत्ति। चेट्ठा न सुच्चइ कया वित्ति ॥" विशेषावश्यक सूत्र की वृत्ति में कहा है कि- रूटित अर्थात् शब्दआवाज, वह श्रुतत्व का सूचक है, चेष्टा कभी भी यह सूचना नही करती है। "उक्त न्यायेन श्रुतत्व प्राप्तो समानीयतायामपि तदेवोच्छसितादि श्रुतं न शिरोधून नकर चलनादि चेष्टा। यतः शास्त्रज्ञ लोक प्रसिद्ध रूढिरियमिति॥" उक्त न्याय से श्रुतत्व की प्राप्ति होने पर भी यही उच्छ्वास, निश्वास आदि श्रुत कहा जाता है । मस्तक हिलाना, हाथ हिलना आदि चेष्टा को श्रुत कहा नहीं जाता । क्योंकि शास्त्रज्ञ जनों की यह प्रसिद्ध रूढ़ि है। - "कर्मग्रन्थ वृत्तौ तु सिरः कम्पनादीनामपि अनक्षर श्रुतत्वमुक्तम्।" तथा च तद्ग्रन्थ अनक्षर श्रुतं क्ष्येडित शिरः कम्पनादिनिमित्तं मामाह्वयति वारयति वा इत्यादि • रूपं अभिप्राय परिज्ञानमिति ॥ . . कर्म ग्रन्थ की वृत्ति में शिर हिलाना आदि भी अनक्षर श्रुत में गिना है। देखो वहां कहा है- 'खंखारा करना, शिर हलाना आदि निमित्त वाला अथवा मुझे बुला रहा है और निषेध कर रहा है इत्यादि रूप अभिप्राय का परिज्ञान यह अनाक्षर श्रुत है।' '. स्याद्दीर्घ कालिकी संज्ञा येषां ते संज्ञिनोमताः । श्रुतं संज्ञि श्रुतं तेषां परं त्व संज्ञिक श्रुतम् ॥७८७॥ सम्यक् श्रुतं जिन प्रोक्तं भवेदावश्यकादिकम् । तथा मिथ्या श्रुतमपि स्यात्सम्यक् परिग्रहात् ॥७८८॥ आवश्यकं तदपरमिति सम्यक् श्रुतं द्विधा । षोढा चावश्यकं तत्र सामायिकादि भेदतः ॥७८६॥ जिसको दीर्घकाल की संज्ञा हो उसे संज्ञि कहते हैं और जिसको श्रुत
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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