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________________ ततश्च........ ( १६६ ) व्यंजनैव्यंजनानां यः सम्बन्धः प्रथमः स हि । व्यंजनावग्रहो ऽस्पष्टतरावबोध लक्षणः ॥७०६ ॥ दीपक जैसे घटादि को, वैसे ही जो होने पर पदार्थ को प्रकट करता हैं वह व्यंजन है । यह व्यंजन उपकरणेन्द्रिय के साथ में जोड़ने का ज्ञान उत्पन्न करता है। अथवा शब्दादि पुद्गलों का जो समूह हो उसका नाम व्यंजन कहा है क्योंकि 'व्यज्यते तद् व्यंजनम्' ऐसी इसकी व्युत्पत्ति है और इस तरह होने के कारण व्यंजनों का व्यंजन के साथ प्रथम सम्बन्ध - इसका नाम व्यंजनावग्रह है । अत्यन्त अस्फुट ज्ञान यह इसका लक्षण - व्याख्या है । ( ७०४ से ७०६) अस्य च स्वरूपमेवं तत्त्वार्थ वृत्तौ "यदोपकरणेन्द्रियस्य स्पर्शनादि पुद्गलैः स्पर्शाद्याकार परिणतैः सम्बन्ध उपजातो भवति तदा किमप्येतदिति गृह्णाति । किन्त्वव्यक्त ज्ञानोऽसौसुप्तमत्तादि सूक्ष्माव - बोध सहित पुरुष वदिति । तदा तैः स्पर्शाद्युपकरणेन्द्रिय संश्लिष्टैः या च यावती च विज्ञान शक्तिः आविरस्ति सा एवं विधा ज्ञान शक्तिः अवग्रहाख्या ॥ तस्य स्पर्शनाद्यप करणेन्द्रिय संश्लिष्ट स्पर्शाद्याकार परिणत पुद्गल राशेः व्यंजनाख्यस्य ग्राहिका अवग्रह इति भण्यते ॥ तेनैतदुक्तं भवति । स्पर्शाद्युपकणेन्द्रिय संश्लिष्टाः स्पर्शाद्याकार परिणताः पुद्गलाः भण्यन्ते व्यंजनम । विशिष्टार्थावग्रह कारित्वात्तस्य व्यंजनस्य परिच्छेदकोव्यक्तोऽवग्रहो भण्यते अपरोऽपि । तस्मान्मानाग् निश्चिततरः किमप्येतदित्येवं विधं सामान्य परिच्छेदोऽवग्रहो भण्यते । ततः परमीहादयः प्रवर्तन्ते इति ॥ " इसका स्वरूप तत्त्वार्थ सूत्र वृत्ति में इस तरह कहा है- जब उपकरण इन्द्रिय का स्पर्शादि आकार प्राप्त करते स्पर्शन आदि पुद्गलों के साथ में सम्बन्ध होता है तब कुछ है ऐसा ज्ञान होता है, परन्तु वह ज्ञान निद्रा में पड़े हुए और मद पीये पुरुष को होता है, ऐसा सूक्ष्म - अव्यक्त होता है। स्पर्शन आदि पुदगलों का स्पर्श आदि उपकरण इन्द्रियों के साथ में इस तरह संश्लेष होने से जो और जितनी ज्ञान शक्ति आविर्भाव प्राप्त करता है यह ज्ञान शक्ति उस अवग्रह अथवा स्पर्श आदि उपकरण इन्द्रियों के साथ में संश्लेष होने से उसका स्पर्श आदि आकार होता है। इस तरह व्यंजन नामक पुद्गल समूह को ग्रहण करने वाली जो शक्ति है उसका नाम अवग्रह है । भावार्थ यह है कि इस प्रकार स्पर्शन आदि उपकरण इन्द्रियों के साथ में संश्लिष्ट होकर परिणाम से स्पर्श आदि आकार प्राप्त करता है, उन पुद्गलों का नाम व्यंजन है तथा एक दूसरा अवग्रह है जो इस व्यंजन का परिच्छेदक है I
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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