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(१८६) यदि वैकद्वित्रि चतुः पंचभेदं भवेदिदम् । जिनोक्त तत्वश्रद्धान रूपमेकविधं भवेत् ॥६५७॥
अथवा तो सम्यकत्व एक प्रकार का, दो प्रकार, तीन प्रकार, चार प्रकार का और पांच प्रकार का भी है। उसमें १- जिनेश्वर द्वारा कहे तत्त्वों पर श्रद्धा रखना वह एक प्रकार सम्यकत्व है । (६५७)
द्विधा नैसर्गिक चौपदेशिकं चेति भेदतः । भवेन्नैश्चयिकं व्यावहारिकं चेति वा द्विधा ॥६५८॥ .. द्रव्यतो भावतश्चेति द्विधा वा परिकीर्तितम् । . तत्र नैसर्गिकं स्वभाविकमन्यद् गुरोगिरा ॥६५६॥
२- नैसर्गिक और उपदेशक- इस तरह दो प्रकार का है अथवा नैश्चषिक और व्यवहारिक- ये दो प्रकार का अथवा द्रव्य से और भाव से- इस तरह भी दो प्रकार का होता है। इसमें नैसर्गिक अर्थात् स्वभाव से और उपदेशिक अर्थात् गुरू महाराज के उपदेश से सम्यकत्व होता है । (६५८-६५६)
यथा पथश्च्युतः कश्चिदुपदेशं विना भ्रमन् । मार्ग प्राप्नोति कश्चित्तु मार्ग विज्ञोपदेशतः ॥६६०॥ यथा वा कोद्रवाः केचित्स्युः काल परिपाकतः । स्वयं निमर्दनाः केचित् गोमयादि प्रयत्नतः ॥६६१॥ कश्चिज्ज्वरो यथा दोष परिपाकाद् व्रजेत् स्वयम् । कश्चित्पुनर्भेषजादि प्रयत्ने नोपशाम्यति ॥६६२॥ स्वभावादथवोपाया याद्यथा शुद्धं भवेत्ययः । ' यथोज्वलं स्याद्वस्त्रं वा स्वभावाद्यनतोऽपि वा ॥६६३॥ सम्यकत्वमेवं केषांचिदङ्गिनां स्यान्निसर्गतः । गुरुणामुपदेशेन के षांचित्तु भवेदिदम् ॥६६४॥
इन दो प्रकार को यथार्थ समझाने के लिए कुछ दृष्टान्त देते हैं- जैसे मार्ग में भूल जाने से कोई मनुष्य भ्रमण करते-करते अपने आप ही मार्ग पर आ जाता है
और कोई मार्गदर्शक के बताने से शुद्ध मार्ग पर आ जाता है अथवा कोद्रवा में कितने ही काल के परिपाक से छिलके निकल जाते हैं और कितने के गाय के गोबर के प्रयोग से छिलके निकालने में आते हैं । अथवा किसी प्रकार का बुखार दोषों के परिपाक से अपने आप उतर जाता है और कोई व्यक्ति औषधि आदि के