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________________ (१८४) चमकती है अथवा जैसे मलिन वस्त्र मणि को रोकता है उज्ज्वल वस्त्र में से. इसकी कान्ति कुछ चमकती है और वस्त्र सर्वथा हटा लेने से इसकी स्वरूपवान कान्ति पूर्णरूप में प्रकट होती है इसी ही तरह से रस के अपवर्तन आदि मेथ्यात्व के पुद्गल क्षायोप-शमिक रूप को तुरंत प्राप्त होने से कुछ अस्फुट आत्म धर्म रूप श्रद्धा प्रकट होता हैं । (६४३ से ६४६) . क्षायोपशमिके क्षीणे स्फूटं सर्वात्मना भवेत् । • आत्मस्वरूपं सम्यकत्वं तच्च क्षायिकमुच्यते ॥६४७॥ ... क्षायोपशमिक भी जब क्षीण होता है तब आत्मस्वरूप पूर्णरूप में स्फुट होता है । यह क्षायिक सम्यकत्व कहलाता है । (६४७) . एवं च ..... तत्त्व श्रद्धान जनक सम्यकत्व पुद्गल क्षये। कथं श्रद्धा भवेत्तच्चे शंकैषापि निराकृता ॥४८॥ और इसी तरह तत्त्व में श्रद्धा उत्पन्न कराने वाले सम्यक्त्व के पुद्गल क्षय होते ही तत्त्व में किस तरह श्रद्धा होती है उस शंका का समाधान हो गया। (६४८) तथाहुर्भाष्यकार:सो तस्स विसुद्धयरोजायइ सम्मत्त पोग्ग लख्खयओ। . दिट्ठिव्वसणा सुद्धस्स पडलविगये मणूसस्स ॥६४६॥ इदं कर्मग्रन्थ मतम् ॥ ...... सिद्धान्त मते. पुनः । 'अपूर्व करणे नैव मिथ्यात्वं कुरु ते त्रिधा ॥' भाष्यकार भी कहते हैं कि- 'परदा निकल जाने से जैसे मनुष्य की दृष्टि विशुद्ध होती है वैसे ही सम्यकत्व के पुद्गलों का क्षय होने से सम्यकत्व अत्यन्त शुद्ध होते हैं।' (६४६) यह कर्मग्रन्थ का अभिप्राय है। सिद्धान्त के मत अनुसार तो 'अपूर्व करण से ही तीन प्रकार का मिथ्यात्व होता है।' सम्यकत्वावारकरसं क्षपयित्वा विशोधिताः। । मिथ्यात्व पुद्गलास्ते स्युः सम्यकत्वमुपचारतः ॥६५०॥ .. सम्यकत्व का आवरण रस को खत्म करके शुद्ध बना । मिथ्यात्व के पुद्गलों को यहां उपचार से सम्यकत्व के पुद्गल कहा है । (६५०) .
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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