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________________ (१७६) यथा जनास्त्रयं के ऽपि महापुरं यियासवः। प्राप्ताः क्वचन कान्तारे स्थानं चौरभयंकरम् ॥६२०॥ तत्र द्रुतः द्रुतं यान्तो दरशुस्तस्करद्वयम् । तदृष्ट्वा त्वरितं पश्चादेको भीतः पलायितः ॥६२१॥ गृहीतश्चापरस्ताभ्यामन्त्यस्त्ववगणय्य तौ। भय स्थानमतिक्रम्य पुरं प्राप पराक्रमी ॥६२२।। इसके ऊपर एक दृष्टान्त देते हैं - किसी महान् नगर में जाने के लिए तीन मनुष्य चले। रास्ते में चोरों से भयवाला एक जंगल आया। वहां उनको दो चोर मिले। उन्हें देखकर उन तीन मनुष्यों में से एक तो भयभीत होकर भाग गया। दूसरा चोरों के हाथ पकड़ा गया, परन्तु तीसरा पराक्रमी था- दोनों चोरों को ___ पराजित कर वहं भयस्थान को पार करके इच्छित स्थान महान् नगर में पहुँच गया। ... (६२० से ६२२) दृष्टान्तोपनयश्चात्र जनाजीवा भवोऽट वी । पन्थाः कर्मस्थितिम्रन्थिदेशस्त्विह भयास्पदम् ॥६२३॥ रागद्वेषौ तस्करौ द्वौ तद्भीतो बलितस्तु सः । ग्रन्थिं प्राप्यापि दुर्भावाद्यो ज्येष्ठ स्थितिबन्धकः ॥६२४॥ चौरऊ द्धस्तु स ज्ञेयस्तादृग्रागादि बाधितः । ग्रन्थिं भिनति यो नैव न चापि वलते ततः ॥६२५॥ सत्वभीष्टपुरं प्राप्तो योऽपूर्व करणाद् द्रुतम् । रागद्वेषावपाकृत्य सम्यग् दर्शनमाप्तवान् ॥६२६॥ . इस दृष्टान्त का उपनय इस तरह से-तीन मनुष्य वह संसारी जीव • समझना । अटवी यह संसार समझना । मार्ग अर्थात् कर्म की स्थिति और भय स्थान यह ग्रन्थि प्रदेश समझना। दो चोर यह राग तथा द्वेष हैं । भयभीत होकर वापिस भाग जाना वह ग्रन्थि प्रदेश तक आकर वापिस आ जाना। ऐसा उत्कृष्ट स्थिति बंध वाला दुर्लव्य जीव समझना। चोर ने पकड़कर रोक रखा यह राग द्वेष से पराजित प्राणी समझना कि जिससे ग्रन्थि को भेदन नहीं कर सकता या वापिस नहीं जा सकता है । जो तीसरा अपने इष्ट स्थान पर पहुँच गया वह अपूर्वकरण के द्वारा राग द्वेष दूर करके सम्यक्दर्शन को प्राप्त करने वाला जीव समझना । (६२३ से ६२६)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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