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________________ (१७४) पुमांसोऽल्पाः स्त्रियः संख्यगुणाः क्रमादनन्तकाः । अवेदाः क्लीव वेदाश्च सवेदा अधिकास्ततः ॥५६६॥ . संख्या की अपेक्षा से पुरुष सबसे थोड़े हैं, स्त्रियां पुरुष से संख्याता गुना हैं, इससे अनन्त गुना अवेदी सिद्ध के जीव हैं, इससे भी अनंत गुना नपुंसक हैं और नपुंसक से भी अधिक सवेदी हैं । (५६६) पुंस्त्वसंज्ञित्वयोः कायं स्थितिरान्तर्महर्तिकी । लध्वी गुर्वी चाब्धि शतपृथक्त्वं किंचनाधिकम् ॥१॥ स्त्रीत्व कायस्थितिः प्रज्ञापनायां समयो लघुः । उक्ताथास्यां गरीयस्यामादेशाः पंच दर्शिताः ॥२॥ चतुर्दशाष्ट दश वा शतं वाथ दशोत्तरम् । : पूर्णं शतं वा पल्यानि पल्यानां वा पृथक्त्वकम् ॥३॥ पूर्व कोटि पृथक्त्वाढ्याः पंचाप्येते विकल्पकाः । पंच संग्रह वृत्त्यादे यै तेषां च विस्तृतिः ॥४॥ आद्य द्वितीये स्वर्गे द्विः पूर्व कोट्यायुषः स्त्रियाः। सभर्तृकान्य देवीत्वेनोत्पत्त्यैषां च भावना ॥५॥ इति वेदः ॥२४॥ पुरुष रूप की और संज्ञी रूप की काय स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति दो सौ सागरोपम से लेकर नौ सौ उपरांत तक की है। स्त्रीत्व की काय स्थिति अलग रूप से पन्नवना सूत्र में इस तरह कही है कि जघन्यतः एक समय की है और उत्कृष्ट रूप में १- चौदह पल्योपम है अथवा २- अठारह पल्योपम अथवा ३- एक सौ दस पल्योपम अथवा ४- एक सौ पल्योपम अथवा ५- दो से लेकर नौ पल्योपम तक है । इन पांचों विकल्प में पल्योपम की संख्या अलग-अलग है । इसके सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक बताने के लिए पंच संग्रह नामक ग्रन्थ की टीका में कहा है- प्रथम और दूसरे स्वर्ग में दो करोड़ पूर्व की आयुष्य वाली स्त्री पति वाली और भर्तार बिना देवी रूप उत्पन्न होती है- इसके कारण से इस विकल्प की भावना कही है। (१-५) इस तरह चौबीसवां द्वार वेद का स्वरूप कहा है। जिनोक्ताद विपर्यस्ता सम्यग्दृष्टिनिगद्यते। सम्यकत्वशालिनां सा स्यात्तच्चैवं जायतेंगिनाम् ॥५६७॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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