________________
(१६७)
..
भाव
होती है । (५५६)
इसमें भावना पूर्व के समान समझना । नारकस्य नारकत्वे भावतो द्रव्यतोऽपि च । तान्यतीतान्यनन्तानि सन्ति पंचाष्ट च स्फुटम् ॥५६०॥ भविष्यन्ति न केषांचित्केषांचित्पंच चाष्ट च । ज्ञेयानि तान्येक वारं नरकं यास्यतोंगिन : ॥५६१॥
नारकी के जीवों के नारकी रूप में पांच भावेन्द्रिय और आठ द्रव्येन्द्रिय होती हैं और कई को अनन्त बार अतीत में होती हैं। जबकि अब के बाद नरक में नहीं जाने वाले कितने ही प्राणियों को ये इन्द्रियां नहीं होती हैं और जो अभी एक बार नरकं में जाने वाला है उसे भाव से पांच और द्रव्य से आठ होने वाली हैं। (५६०-५६१)
संख्येयान्येतानि संख्यवारं नरक यायिनः ।
असंख्येयान्यप्यनन्तान्येवं भाव्यानि धीधनैः ॥५६२॥ .....नरक में संख्यात् बार जाने वालों को वह संख्यात् बार होने वाली हैं,
असंख्यात बार जाने वाले को असंख्यात् बार और अनन्त बार जाने वाले को अनन्त बार होने वाली हैं । इस तरह समझना । (५६२) - अति कान्तान्यनन्तानि सुरत्वे नारकस्य च । । वर्तमानानि नैव स्युर्भावीनि पुनरुक्त वत् ॥५६३॥
और नरक के जीव को तथा देव के जन्म में अनन्त इन्द्रिय अतीत काल में होती हैं, वर्तमान काल में नहीं होती एवं भविष्य काल में अनन्त बार होती हैं । (५६३)
विजयादि विमानित्वे यदि स्युः नारकांगिनाम् । नातीतानि भविष्यन्ति पंचाष्ट दश षोडश ॥५६४॥
विजय विमान आदि के देव जन्म में नारकी जीवों को इन्द्रिय अतीत में न थीं भविष्य काल में पांच, आठ, दस अथवा सोलह होती हैं । (५६४)
एवं सर्व गतित्वेन सर्वेषामपि देहिनाम् ।
भावनीयान्यतीतानि सन्ति भावीनि च स्वयम् ॥५६५॥
इस तरह सर्व जीवों की सर्व जन्म की अतीत, वर्तमान और भविष्य काल की इन्द्रिय स्वयमेव जान लेना । (५६५)