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________________ (१४५) शृंगार तिलक नामक ग्रन्थ के आधार पर वृक्षों में मैथुन संज्ञा होती है- इस तरह अन्यजन (दर्शनकार) भी कहते हैं । वह इस प्रकार कोई स्त्री अपने पति से हास्यपूर्वक वचन कहती है कि- हे सुन्दर! तुम तो मेरे कुरबक हो, फिर मुझे क्यों आलिंगन नहीं करते ? तुम मेरे हृदस्थ केशर (वृक्ष) हो, तो भी मेरा मन मदिरा की इच्छा क्यों नहीं करता ? तुम मेरे मन के अशोक वृक्ष हो तो तुम्हें तो मैं पाद प्रहार ही करूंगी । (४५२) तथा सुन्दर श्रृंगार में तैयार हुई स्त्री दृष्टि करे तो कुएं में से पारा भी उछलता रहता है, इस तरह भी लोकोक्ति है। स्तोका मैथुन संज्ञोपयुक्ता नैरयिकाः क्रमात् । संख्येयना जग्धि परिग्रह त्रासोपयुक्त का ॥४५३॥ ___नारकी जीवों में मैथुन संज्ञा वाले सर्व से कम होते हैं, इससे आहार संज्ञा वाले, परिग्रह संज्ञा वाले और भय संज्ञा वाले अनुक्रम से एक के बाद संख्यात- . संख्यात गुणा हैं । (४५३) स्यु परिग्रह संज्ञायास्तिर्यंचोऽल्पास्ततः क्रमात् । : ते मैथुन भयाहार संज्ञाः संख्यगुणाधिकाः ॥४५४॥ . तिर्यंच जीवों में परिग्रह संज्ञा वाले सर्व से कम होते हैं, इससे मैथुन संज्ञा वाले, भय संज्ञा वाले और आहार संज्ञा वाले अनुक्रम से पूर्वापर संख्यात-संख्यात गुणा होते हैं । (४५४) - भय संज्ञान्विताः स्तोका मनुष्या स्युर्यथाक्रमम् । संख्येयघ्ना भुक्ति परिग्रह मैथुन संज्ञकाः ॥४५५॥ मनुष्यों में भय संज्ञा वाले सब से कम होते हैं, इससे आहार संज्ञा वाले, परिग्रह संज्ञा वाले और मैथुन संज्ञा वाले अनुक्रम से पूर्वापर संख्यात-संख्यात गुणा होते हैं। (४५५) आहार संज्ञाः स्युः स्तौका देवाः संख्यगुणाधिकाः। - संत्रास मैथुन परिग्रह संज्ञा यथाक्रमम् ॥४५६।। . देवताओं में आहार संज्ञा वाले सबसे कम होते हैं, इससे भय संज्ञा वाले, मैथुन संज्ञा वाले और परिग्रह संज्ञा वाले अनुक्रम से पूर्वापर एक के बाद दूसरा संख्यातसंख्यात गुणा होते हैं । (४५६)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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