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________________ (८३) अत्रोच्यते- न चक्षुर्गोचरः सूक्ष्मतया तैजस कार्मणे । - ततो नोत्पद्यमानोऽपिम्रियमाणोऽप्यसौ स्फुटः॥१०८॥ यह शंका होती है कि जब आत्मा इन दोनों शरीरों सहित आया-जाया करता है तब आते-प्रवेश करते और जाते-निकलते क्यों नही दिखता है ? इस शंका का समाधान करते है- तैजस और कार्मण शरीर सूक्ष्म हैं इससे दृष्टि गोचर नहीं होते। इससे आत्मा इन दो शरीर सहित होने पर भी उत्पन्न होते या मृत्यु होते जाते-आते भी स्पष्ट नहीं दिखता है। (१०७-१०८) परैरप्युक्तम्- अन्तरा भवदेहोऽपि सूक्ष्मत्वान्नोपलभ्यते । । निष्क्रामन्प्रविशन्वापि नाऽभावोऽनीक्षणादपि ॥१०६)। अन्य दर्शन में भी कहा है कि- अंतरंग आत्म शरीर सूक्ष्म होने से निकलते प्रवेश करते दिखता नहीं है, परन्तु इस कारण से इसकी उपस्थिति नहीं है, ऐसा नहीं जानना। (१०६) स्वरूपमेवं पंचानां देहानां प्रतिपादितम् । कारणादि कृतांस्तेषां विशेषान् दर्शयाभ्यथ ॥११०॥ इस तरह पांच प्रकार के शरीर का स्वरूप समझाया है। अब इस शरीर सम्बन्धी. कारण आदि कृत विशेष अन्तर कहते हैं। (११०) संजातं पुद्गलैः स्थूलैर्देहमौदारिकं भवेत् । सूक्ष्म पुद्गल जातानि ततोऽन्यानि यथोत्तरम् ॥१११॥ औदारिक शरीर स्थूल पुद्गलों का बना है । इसके बाद के अन्य उत्तरोत्तर सूक्ष्म पुद्गलों के बने हैं। (१११) इति कारण कृतो विशेषः॥ अर्थात् यही कारण कृत विशेष अन्तर है। यथोत्तरं प्रदेशैः स्युसंख्येय गुणानि च । . आ तृतीयं ततोऽनन्त गुणे तैजस कार्मणे ॥११२॥ ___ इति प्रदेश संख्या कृतो विशेषः ॥ पहले शरीर से लेकर तीसरे शरीर तक उत्तरोत्तर असंख्य प्रदेश वाला होता है और चौथा व पांचवां इससे अनन्त गुना प्रदेश वाला होता है। (११२) यह प्रदेश संख्याकृत विशेष अन्तर है। आद्यं तिर्यग्मनुष्याणां देव नारकयोः परम् । केषांचिल्लब्धिमद्वायुसंज्ञि तिर्यग् नृणामपि ॥११३॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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