________________
स्तोत्र-रास-संहिता
१३३
॥ श्री दादा गुरु गुण इकतीसा ||
॥दोहा॥ . श्री गुरु देव दयाल को, मन में ध्यान लगाय । 'अष्ट सिद्धि नवनिधि मिले, मनवांछित फल पाय ||
॥ चौपाई॥ श्री गुरु चरण शरण में आयो, देख दरस मन अति सुख पायो । दत्त नाम दुःख भंजन हारा, बिजली पात्र तले धरनारा ||१|| उपशम रसका कन्द कहावे, जो सुमरे फल निश्चय पावे । दत्त सम्पत्ति दातार दयालु, निज भक्तन के हैं प्रतिपालु ||२|| बावन वीर किये वश भारी, तुम साहिब जग में जयकारी || जोगणी चौंसठ वशकर लीनी, विद्या पोथी प्रगट कीनी ||३|| पांच पीर साधे बलकारी, पांच नदी पंजाब मझारी । अन्धों की आंखें तुम खोली, गूगों को दे दीनी बोली ॥४|| गुरु . बल्लम के पाट विराजो, सूरि सकल में सूरज सम साजो । “जग में नाम तुम्हारो कहिये, परतिख सुरतरु सम
सुख लहिये ||५|| इष्ट देव मेरे गुरु देवा, गुणी जन मुनी जन करते सेवा । तुम सम और देव नहीं कोई, जो मेरे हितकारक होई ||६|| तुम हो सुरतरु वञ्छित दाता, मैं निशदिन तुमरे गुण गाता। पारब्रह्म गुरु हो परमेश्वर, अलख निरंजन तुम जगदीश्वर ||७|| तुम