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श्री अजित-शान्ति-स्तोत्र
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अजब-नद्दव खंति-विमुत्ति-समाहि-णिहिं । संतिकरं पणमामि दमुत्तम-तित्थयरं, संतिमुणी ! मम संति समाहिवरं दिसउ ||८i ( सोवाणयं ). सावत्थि-पुव्व-पत्थिवं च वर हत्थि नत्यय पसत्थ वित्थिण्ण संथियं, थिर सरिच्छ-वच्छ नयााल-लीलायमाण-वर-गंध-हत्थि-पत्थाण पत्थियं संथ-वारिह। हत्थि-हत्थ-बाहुं धंत-कणग-रुअग णिरुवहय-पिंजरं पवर-लक्खणोवचिय सोम्म-चारु-रूवं, सुइ-सुह-मणाभिराम-परम-रमणिज्ज-वर - देवदुंदुहि-णिणाय महुरयर-सुहगिरं ॥९|| ( वेड्डओ ) अजियं जिआरिगणं, जिअ-सव्व-भयं भवोह-रिउं। पणमामि अहं पयओ पावं पसमेउ मे भयवं |१०|| ( रासालुद्धो ) कुरु-जणवय हत्थिणाउर-णरीसरो पढमं तओ महा चक्कट्टि-मोए महप्पभाओ, जो बावत्तरि पुरवर-सहस्स-वर-णगर-णिगमज़णवय-वई-बत्तीसा रायवर सहस्साणुयाय-मग्गो । चउदस-वर-रयण नव-महाणिहि चउसट्टि-सहस्स-पवर जुवईण-सुंदरवई , चुलसी-हय-गय-रह-सय-सहस्स-सामी छण्णवइ गामकोडि सामी आसीज्जो मारहम्मि भयवं ॥११॥ (वेड्डओ ) तं संति संतिकरं संतिण्णं सव्व भया। संति थुणामि जिणं, संति विहेउ मे ॥१२।। (रासाणंदियं) इक्खाग ! विदेह ! णरीसर ! णर-वसहा ! मुणि-वसहा ! णवसारय ससि-सकलाणण!विगय-तमा!विहुय-रया। अजिउत्तम तेअ! गुणेहिं महामुणि!अमिय बला! विउलकुला! पणमामि