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स्तोत्र-रास-संहिता
॥ ढाल-तीसरी ॥
( चौपाई ) सेजेजेना कहुं सोलउद्धार ते सुणज्यो सहूको सुविचार । सुणतां आणंद अंग न माय । जन्म जन्मना पातिक जाय ||१|| ऋषमदेव अयोध्यापुरी । समवसर्या स्वामी हित करी । भरत गयो वंदणने काज | ये उपदेश दियो जिनराज ॥२॥ जगमांहे मोटा श्रीअरिहंतदेव । चौसठ इन्द्र करे जसुसेव । तेहथी मोटा संघ कहाय। जेहने प्रणमें जिनवरराय ॥३|| तेहथी मोटो संघवी कह्यो । भरत सुणीने मन गहगह्यो । भरत कहे ते किम पामिये । प्रभु कहे सेजे जात्रा किये ॥४|| मरत कहे संघवी पद मुझ । थे आपो हुँ अंगज तुझ । इंद्र आण्या अक्षतवास । प्रभु आपे संघवी पद तास ||५|| इंद्र तिण वेला ततकाल । भरत सुभद्रा ' बिहुंनेमाल । पहिरावी घर संप्रेडिया । सखर सोनाना रथ आपिया ||६|| ऋषमदेवनी प्रतिमावली । रत्नतणी दीधी मनरली। मरते गणधर घर तेडिया । शांतिक पौष्टिक सहु तिहां किया ||७|| कंकोत्री मूंकी सहु देश । भरत तेडायो संघ अशेष । आयो संघ अयोध्यापुरी । प्रथम थकी रथ जात्रा करी ||८|| संघ भगति कीधी अति घणी । संघ चलायो सेजा भणी। गणधर बाहुबल केवली। मुनिवर कोडि साथे लिया वली |९|| चक्रवर्ति