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स्तोत्र-रास-संहिता
वरसे, गोयम गणहर केवल दिवसे, कियो कवित्त उपगार परो। आदिहिं मंगल ए पमणीजे, परव महोच्छव पहिलो दीजे, रिद्धि वृद्धि कल्याण करो ॥४|| धन माता जिण उयरे धरियो, धन्य पिता जिण कुल अवतरियो, धन्य सुगुरु जिण दीखियो ए । विनयवंत विद्या भण्डार, तसु गुण पुहवी न लन्मइ पार, वड जिम साखा विस्तरो ए । गोयम सामीनो रास भणीज, चउविह संघ रलियायत कीजे, रिद्धिवृद्धि कल्याण करो ॥४६|| कुंकुम चंदन छडो दिवरावो, माणक मोतीना चौक पुरावो, रयण सिंहासण बेसणो ए । तिहां बेसी गुरु देसना देसी, मविक जीवना काज सरेसी, नित नित मङ्गल उदय करो ॥४७|| ..
राग प्रभाती जे करे, प्रह उगमते सूर ॥ भूख्या भोजन संपजे, कुरला करे कपूर ||१|| अंगूठे अमृत बसे, लब्धि तणा भण्डार || जे गुरु गोतम समरियें, मनवंछित दातार |२|| पुण्डरीक गोयम पमुहा, गणधर गुण संपन्न || प्रह ऊठी नें प्रणमतां, चवदेसे बावन्न ||३|| खंतिखमंगुणकलियं, सुविणियं सव्वलद्धि संपण्णं ॥ वीरस्स पढमं सीसं, गोयम सामी नमसामि ||४|| सर्वारिष्टप्रणाशाय, सर्वाभीष्टार्थदायिने ॥ सर्वलब्धिनिधानाय गौतमस्वामिने नमः ||५||