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परिशिष्टम्-१
॥ श्राद्धविधिमूलमात्रम् ॥
सिरिवीरजिणं पणमिअ सुआओ साहेमि किमवि सङ्कविहीं । रायगिहे जगगुरुणा जह भणियं अभयपुट्टेणं ॥१॥ दिणरत्ति-पव्व-चउमासग-वच्छर-जम्मं किच्चदाराईं। सवाणणुग्गहट्ठा सढविहिए भणिज्जंति ॥२॥ सद्वृत्तणस्स जुग्गो भद्दगपगई विसेसनिउणमई । नयमग्गरई तह दढनिअवयणठिई विणिट्टिो ॥३॥ नामाई चउभेओ, सढो भावेण इत्थ अहिगारो । तिविहो अ भावसढो, सणवयउत्तरगुणेहिं ॥४॥ नवकारेण विबुद्धो, सरेइ सो सकुलधम्मनियमाई। पंडिकमिअ सुई पूइअ, गिहे जिणं कुणइ संवरणं ॥५॥ विहिणा जिणं जिणगिहे, गंतुं अच्चेइ उचिअचिंतरओ । उच्चरड़ पच्चक्खाणं, दढपंचाचारगुरुपासे ॥६॥ ववहारसुद्धि-देसाइविरुद्धचाय-उचिअचरणेहिं।। तो कुणइ अत्थचिंतं, निव्वाहितो निअं धम्मं ॥७॥ मज्झण्हे जिणपूआ, सुपत्तदाणाइजुत्ति भुंजिता । पच्चक्खाइ अ गीअत्थ-अंतिए कुणइ सज्झायं ॥८॥