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द्वितीयः प्रकाशः
'सामइ अपुव्वमिच्छामिठाइउं काउसग्गमिच्चाइ । सुत्तं भणिअ पलंबिअ, भुअकुप्परधरिअपरिहरणओ ॥ घोडगमाईदोसेहिं विरहिअं तो करेइ उस्सग्गं । नाहि अहो जाण, चउरंगुलठ अकडिपट्टो |
तत्थ य धरेइ हिअए, जहक्कमं दिणकए अईआरे । पारेत्तु णमोक्कारेण पढड़ चउवीसथयदंडं ॥ संडासगे पमज्जिअ, उवविसिअ अलग्गबिअयबाहुजुओ । मुहणंतगं च कायं च पेहए पंचवीस इहा ॥
• उठिअडिओ सविणयं, विहिणा गुरुणो करेइ किइकम्मं । बत्तीसदोसरहिअं, पणवीसावस्सगविसुद्धं ॥
अह सम्ममवणयंगो करजुअविहिधरिअपुत्तिरयहरणो । परिचितइ अइआरे, जहक्कमं गुरुपुरो विअडे ॥
अह उवविसित्तु सुत्तं सामाइअमाइअं पढिअ पयओ । अब्भुट्ठिअम्मि इच्चाइ, पढइ दुहओ ठिओ विहिणा || दाऊण वंदणं तो, पणगाइसु जइसु खामए तिन्नि । किइकम्मं करिआयरिअमाइगाहातिगं पढए ॥ इअ सामाइअउस्सग्गसुत्तमुच्चरिअ काउस्सग्गठिओ । . चितइ उज्जोअदुगं, चरित्तअइआरसुद्धिकए ॥ विहिणा पारिअ सम्मत्त सुद्धिहेडं च पढ़इ उज्जोअं । तह सव्वलोअअरहंतचेइआराहणुस्सगं ॥
काउं उज्जोअगरं, चिंतिय पारेइ सुद्धसम्मत्तो । पुक्खवरदीवड्डुं कढइ सुअसोहणनिमित्तं ॥
पुण पणवीसोस्सासं, उस्सग्गं कुणइ पारए विहिणा । तो सयलकुसलकिरिआफलाण सिद्धाण पढइ थयं ॥ अह सुअसमिद्धिहेडं, सुअदेवीए करेइ उस्सग्गं । चितेइ नमोक्कारं, सुणइ व देई व तीइ थुई ॥
एवं खेत्तसुरीए, उस्सग्गं कुणइ सुइ देइ थुई । पढिऊण पंचमंगलमुवविसइ पमज्ज संडासे ॥
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