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________________ (३४) ॥ मुनि कस्तूर विजयविनिर्मिता ॥ स० चमूअ, चमूआ, चमूह, चमूए. चमृसु, चमूसं. सं० हे चतु. ऋकारान्त पुंलिङ्ग - हे चमूआ, चमूड, चमूओ, चमू. प्रत्ययो - अकारान्त तथा उकारान्त पुलिङ्ग प्रमाणे. नियमो - १ ऋकारान्त शब्दना ऋनो सर्वं प्रत्ययो पर छत आर अने ज्ञावाचक शब्दना ऋ नो अर थाय छे, मैथमा अने द्वितीयाना एकवचन तथा द्विवचनने स्थाने थयेला बहुत्रचनना प्रत्ययो सिवाय बीजा वर्षा प्रत्ययो पर छतां ऋ नो उ पण थाय छे. (आर थाय त्यारे रूपो अकारान्त नाम जेग थाय छे. ने उ थाय त्यारे रूपो उकारान्न जेवा थाय छे.) मॅथमाना ए वचनमां ऋ नो आ थइ [ कत्ता ] तेर्बुज रूप विकल्पे कायम रहे छे. सैम्बोधनना एकवचनमां ऋ नो अ थइ तेवुंज रूप विक १. ॥ आरः स्यादौ ॥ ३ ॥ ४५ ॥ स्यादौ परे ऋत आरादेशः ॥ || नाम्न्यरः ॥ ३ ॥ ४७ ॥ स्यादौ ऋतः ॥ २ ३ ऋनामुदस्य मौसु वा ॥ ३ ॥ ४४ ॥ ४ आसौ नवा ॥ ३ ॥ ४८ ॥ ऋतः ॥ ५ ऋतोऽद्वा ॥ ३ ॥ ३९ ॥ आमन्त्रणे सौ ॥
SR No.002256
Book TitlePrakrit Rupmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturvijay
PublisherVadilal Bapulal Shah
Publication Year1926
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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