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________________ पच्च्याच्वन्ट प्राकृत क्षिपू गम् गृधू ॥ मुनि कस्तूरविजयधिनिर्मिता ॥ प्राकृत. संस्कृतः संस्कृत ओहोर नि- द्रा ओसुक्क तिज् खुप्प मज्ज् कवि- कृ खेड्ड रम् कइट कृष् गच्छ गम् कढ . क्वथू गच्छ कत्थ कथ गढ घट कमवस गण्ड ग्रन्थ् कम्म . कृ गम्म गम् कम्म भुजू गमेस गवेष कम्मष उप-, गल सं-घद करा. भञ्ज गलत्थ का कृ गश्च किण.. गा . किलिकिश्च गिज्झ कीर कृ • गुञ्ज हम् . कुक्कर उद्- ष्ठा गुजोल्ल उत्- लम् कुज्झ. . कुध् गुण्ठ उद्- धूल कुण. कृ गुम अम् कुप्प . कुप् गुम्म मुह । कोआस. वि-कम् गुम्मड . कोक व्या-ह गुंछु उत्- क्षिप् कोटुम. . रम् केलाय. समा- रच गुल भ्रम् खउर. . शुभ गुलगुञ्छ क्षिप् : खड्डू . मृद् गुलुगुञ्छ उद्- नम् खम्म खंज गृह खा सं- स्त्या गेण्ह खाद् घत्त खिज्ज खिद् घत्त गवेष खिर ग्रस् खुट्ट गुलल ग्रह खा. क्षिप तुइ. घुम्म
SR No.002256
Book TitlePrakrit Rupmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturvijay
PublisherVadilal Bapulal Shah
Publication Year1926
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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