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________________ ...rrrrr - - - ... ॥ मुनिकस्तूरविजयविनिर्मिता ॥ (११५) क्रियातिपत्तिः एकव० बहव० प्र० म० उ० झाज, झाज्जा, झान्तो, झामाणो १ धातुना अन्त्य 'इ' नो गुण थाय छे तथा 'उ' ऋ, होय तो उनो अव् अने ऋनो अर थाय छे. (नी) 'ने' वर्तमान. एकव. बहुव० प्रथम० नेइ नेन्ति, नेन्ते, नेइरे. मध्यम० नेसि. नेइत्था, नेह. उत्तम० नेमि. नेमो, नेमु, नेम. भविष्यत् काल. एकव० : बहुव० प्रथम नेहिइ नेहिन्ति, नेहिन्ते, नेहिरे. मध्यम० नेहिसि. . नेहित्था, नेहिह.. उत्तम० नेस्स,नेस्सामि,नेहामि नेस्सामो, नेहामो नेहिमो, नेहिमि. नेस्सामु, नेहामु, नेहिम, नेस्साम, नेहाम, नेहिम, नेहिस्सा, नेहित्था. १॥ उषणस्यावः ॥ ऋवर्णस्यारः ॥ युवर्णस्य गुणः ॥४. २३३. ॥ ॥४. २३४. ।। ।। ४. २३७. ॥
SR No.002256
Book TitlePrakrit Rupmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturvijay
PublisherVadilal Bapulal Shah
Publication Year1926
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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