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________________ (१) नैगम नय : . नैगम नय, वस्तुतत्त्व के विभिन्न अंशों को गौणमुख्यभाव से ग्रहण करने वाली दृष्टि है । यह अर्थग्राही नय है । बहुधा लोक में प्रचलित औपचारिक व्यवहार इसी नय के आधार पर प्रवृत्त होता है । पंकज नाम के फूल का अन्य फूलो पर उपचार करना नैगम नय से संभव होता है । (२) संग्रह नय : संग्रह नय वस्तुतत्त्व के सत् अथवा अनुस्यूत धर्मका संग्रह करता है । आकारादि से विभिन्न पदार्थो में समानता और एकता ढूंढना संग्रह नय का . कार्य है । 'जातौ एकवचनं' जैसे न्याय संग्रहनय की दृष्टि है । समूहान्तर्गत प्रत्येक पंकजो को एक रूपसे पहचानना संग्रह नय है । यह भी अर्थग्राही नय है । विशेषतः द्रव्य अंशका ग्राहक है । (द्रव्य = समवायि कारण) (३) व्यवहार नय : लोक में प्रचलित अनौपचारिक व्यवहार, व्यवहार नय की दृष्टि है । यह भी अर्थग्राही नय है । इस नय के अभिप्राय से अतीतकाल में नष्ट और .. अद्यापि अनुत्पन्न पंकज का भी पंकज पद से व्यवहार होता है । . (४) ऋजुसूत्र नय : ... वस्तुतत्त्व के वर्तमान और स्वकीय (अनुपचरित) स्वरूप का ग्रहण करने वाली दृष्टि ऋजुसूत्र नय है । यह भी अर्थग्राही नय है । लेकिन सिर्फ पर्याय ही इसके विषय बनते है । इस नय के अभिप्राय से अतीत में विनष्ट और अद्यापि अनुत्पन्न पंकज वर्तमान काल में विद्यमान नहीं है इसलिये अ-वस्तु है । पंकज वही जो वर्तमान में दृश्यमान है । परवर्ती तीन नय शब्दप्रधान होने से शब्दग्राही नय कहलाते है । ' x
SR No.002246
Book TitleNayamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherBherulalji Kanaiyalalji Kothari Religious Trust
Publication Year2002
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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