SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बोलता है और जिनवर प्रतिमाघर (जिन मंदिर) में धूप-पुष्प-वासक्षेपादि गंध से पूजन करने में 'परम' अत्यन्त उद्यत (उद्यमवंत) रहता है ।।२३० ।। सुविणिच्छियएगमई, धम्मम्मि अनन्नदेयओ अ पुणो । न य कुसमएसु रज्जड़, पुव्वावरवाहयत्थेसु ॥२३१॥ (अहिंसादि) धर्म में अत्यन्त निश्चित एक अनन्य मति युक्त और (दूसरे कोई मिथ्या देव पर नहीं) भगवंत पर ही अनन्य श्रद्धावान् होता है। पुनः (प्रशमादि गुण युक्त होता है) वह मिथ्या शास्त्र पर रागवान् नहीं होता। क्योंकि वे शास्त्र पूर्वापर बाधित (अर्थात् अघटमान खंडित) पदार्थों की प्ररूपणा करते हैं ।।२३१।। दठ्ठणं कुलिंगीणं, तसथावरभूयमद्दणं विविहं । धम्माओ न चालिज्जइ, देवेहिं सइंदरहिं पि ॥२३२॥ . , (बौद्ध सांख्यादि मिथ्याधर्म वाले) कुलिंगियों द्वारा त्रस स्थावर जीवों की (पचन पाचनादि में) होने वाली विविध विराधना देखकर इंद्री सहित देवों द्वारा भी (सर्वज्ञोक्त समस्त जीवराशि की सूक्ष्मता से रक्षा का उपदेश देनेवाले) जैन धर्म से चलायमान नहीं होता। (तो मनुष्यों से वह चलायमान कैसे होगा?) ।।२३२।। ___वंदइ पडिपुच्छड़, पज्जुवासेइ साहुणो सययमेव । . पढइ सुणइ गुणेइ अ, जणस्स धम्म परिकहेइ ॥२३३॥ साधुओं को सतत (एक भी दिन के अंतर बिना निरंतर मन, वचन, काया से) वंदन करे, संदेह के निवारण के लिए, प्रश्न पूछे, पास में रहकर उपासना करे, सूत्राध्ययन करे, अर्थ श्रवण करे, सूत्रार्थ का परावर्तन करे। (च शब्द से उस पर चिंतन करे) लोगों को धर्मोपदेश दे (स्वयं बोध पाकर दूसरों को भी बोधित करे)।।२३३।। दढसीलव्ययनियमो, पोसहआवस्सएसु अक्खलियो । महुमज्जमंसपंचविह-बहुबीयफलेसु पडिक्कंतो ॥२३४॥ शील-सदाचार में दृढ़ चित्त प्रणिधान रखे, अणुव्रत, और दूसरे नियमों के पालने में भी निष्प्रकंप होता है (आहार-शरीर-सत्कारादि त्याग के) पौषध और आवश्यक (सामायिक-प्रतिक्रमणादि नित्य कृत्य) में अतिचार लगने न दे, मद्य-मदिरा-मांस पाँच प्रकार के (वड आदि के) फल और बहुबीज (वेंगणादि) फल से निवृत्त होता है। (इनका त्यागवाला होता है) ।।२३४।। श्री उपदेशमाला
SR No.002244
Book TitleUpdesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy