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________________ प्रभूवीर एवं उपसर्ग 67 सीपाहियों को कुछ न करने के लिये सूचन था। सेठ का लड़का तो पूरा गाँव घूमकर राजदरबार में आ गया। इसके बाद राजा ने पूछा कि-गांव घुमने के अन्तराल में तुमने क्या देखा? क्या अनुभव किया ? श्रेष्ठिपुत्र ने बताया कि महाराज ! मुझे कुछ मालूम नहीं ।क्यों... तुम्हारा मन कहाँ था? उसने कहा कि इस कटोरे में क्या ? आपकी आज्ञा से ये नंगी तलवार साथ में थी इसलिये। अतः एक मृत्यु के भय से यदि मन कटोरा में जम सकता है तो भवोभव के भ्रमण का भय उत्पन्न हो तो महात्माओं के मन का निग्रह नहीं हो सकता ? सेठ का लड़का झेंपते हुए गिर परा और भूल स्वीकार लिया।इस कौतुक का रहस्य भी समझ गया ।महात्माओं के सच्चे गुणों का गान करने लगा। उस को भी धर्म अच्छा लगने लगा। मनोनिग्रह निश्चय ही कठीन है परन्तु अशक्य नहीं। हमलोगों का प्रयत्न ही कहाँ है? ... अपने तो प्रभु महावीर पर संगम द्वारा किये गये उपसर्गों की बात कर रहेहैं।सात उपसर्गों की बात पूरी हुई न?८.अब चूहों की फौज भी तैयार होकर आ गयी। चूहों की जाति को तो जानते हैं न ? रात-दिन खा-खा करते हुए कोने-कोने फिरते रहना। एक ओर मल-मूत्र त्याग करना तो दूसरी ओर जहां चाहे छिद्र करके खाते जाना, ऐसी तो इस जाति की आदत है। दाँत से प्रभु के शरीर को काटते जाता है और ऊपर से मूत्र करते जाता है । विचार करो, महानुभावों ! कैसी मर्मान्त पीडा होती है ? संगम का क्रोधज्यों-ज्यों बढते जाता है त्यों-त्यों भगवान की एकाग्रता, समता बढती जाती है। तुम हिलो पर मैं ना हिलूँका अभिमान नहीं है बल्कि समत्वयोग की श्रेष्ठफलश्रुति है। कदर्थनाओं की परंपरा .... ग्रन्थकारों ने जिन्हें बारंबार सुराधम अर्थात् अधम जाति का देव बतलाया है ऐसे संगमदेव,९. उछलते संढवाले हाथियों का समूह तैयार करता है। पर्वत केसमान ऊँचेकाले चट्टान की तरहहाथियोंने विविधप्रकार से प्रभुको पीडा देते हैं। इसी तरह १०. हथिनियाँ यमराज के समान विकराल रूप करके आती हैं। स्त्री जब अपनी जाति पर जाती है तो पुरुष की अपेक्षा अधिक क्रूर बन सकती है। हाथिनियों ने सूंढ में लेकर प्रभु को आकाश में उछालना आदि अनेक प्रकार की असह्य यातनाएँ दी लेकिन सभी शून्य....११. पिशाचों को इन पर छोड़ा गया पर ये भी फोगट गया।१२. विकराल दाढवाला नुकीले
SR No.002241
Book TitlePrabhu Veer evam Upsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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