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'प्रभूवीर एवं उपसर्ग
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भयंकर क्रोधके साथ संगम भगवान के ऊपर तथा आस-पास घोर रूपसे धूल की वर्षा करता है। इससे दोनो पाँव से लेकर क्रमशः आँख-कान तक धूल के ढेर से भगवान ढंक जाते हैं। श्वासोश्वास लेना भी मुश्किल हो जाता है। इसके बाद भी भगवान तील के छिलके का तीसरा भागमात्र भी ध्यान से विचलित नहीं होते हैं । प्रभु के अविचलित चित्त को देखकर संगम ने २. चीटियों का झुंड की विकुर्वणा की(बनाया) किजो चीटी का मुख वज्र से भी कठोर व प्रचंड था। जैसे दुर्जन मनुष्य को अवसर मिलता है तो सज्जन मनुष्य की कोई कसर बाकी नहीं रखता है उसी प्रकार चीटियों का झुंड प्रभुको उपद्रव करने में बाकी नहीं रखता है। एक चीटी का दंश क्या हालत कर देता है वह हम सभी जानते ही हैं। कमल से भी कोमल कायावाले भगवान को वज्रमुखवाली चीटी काटकर आर-पार आती-जाती हैं एवं शरीर चलनी की भांति बना डालती है। इसके बाद भी भगवान का एक रोम भी नहीं हिलता है, इनकी धीरता को क्या उपमा दी जाय? हम सभी इनके चरणोपासककहे जाते हैं, चरणों में रहनेवाले गिने जाते हैन? किसी का हाथ या वस्त्र भी शरीर को स्पर्श कर जाता है तो भी
क्या हो जाता है? फूटे भाग्यवाले लोगों का मनोरथ की भाँति तीक्ष्ण मुँहवाली . चीटियाँ भी प्रभुको कुछभीनकर सकीं।
. ३. भयंकर डांस की विकुर्वणा- जिसे दूर करना मुश्किल था, सुई जैसा तीक्ष्ण मुँहवाले ये डांस प्रभु के ऊपर टूट पड़ते हैं। मानो कि खेत में टिड्डी पड़ी हो नही ? मच्छर या डांस इस गाँव में या घर में है यह मालूम होते ही अपनी क्या दशा हो जाती है? प्रयत्न क्या होता है? ... अपने ये परमतारक परमात्मा देह पर निस्पृह होने से अपनी काया पर कठोर बनते हैं। कर्म पर क्रूर होते हैं। यदि सहन न करना होता तो ऐसे संगम जैसे हजारों की क्या ताकत थी? एक नेत्र खोले कि सामनेवाले व्यक्ति फट जाय ऐसी अतुल शक्ति इनमें होती हैं। लेकिन कहा न, इन परमतारकों का संपूर्ण स्वरू पकोई शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। . अपन लोगों को एक रात नींद न आये या एकाधदिन भूख न लगे तो बार-बार शिकायत करनी होती है, क्योंकि देहाध्यास जीवित बैठा है। जबकि अपने ये परमेश्वर देह में होने पर भी देहसे पर अवस्था का अनुभव कर रहे हैं।
वटवृक्ष पर आया हुआ संगम ४. धीमेल नामक क्षुद्र जंतुओं को प्रभु