SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रभुकी दिक्षा का वरघोडा । दूसरी ओर सिंहासन काँपने से इन्द्र दीक्षा का अवसर जान कर चौसठ इन्द्र सहित असंख्य देवताओं प्रभु का दीक्षोत्सव मनाने आ पहुँचे । प्रभु का अंतिम स्नान, इसके लिये दैवी सामग्रियाँ, एवं राजा द्वारा एकत्रित सामग्री आदि का वर्णन शास्त्र में अद्भुत रूप से किया गया है। - मार्गशीर्ष (कार्तीक )कृष्णपक्ष की दशमी तिथिके मंगल दिन में प्रभु के महाभिनिष्क्रमण हेतु निकाली गयी शोभायात्रा एक दृष्टांतरूप है। ज्ञातवनखंड नामक उद्यान में पधारे हुए प्रभु ने स्वयं अपने हाथों से आभूषणादि का त्याग करके पंचमौष्टिक लोच किया । सर्वसामायिकका उच्चारण किया। प्रभु सर्वविरति के धारक बने, तब इन्हें चौथा मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न हुआ। इन्द्रादि देवगण प्रभु को वंदनकर नंदीश्वरद्वीप में दीक्षाकल्याणक का उत्सव करके अपने स्थान गये । यहाँ प्रभु स्वजनों को पूछकर विहार प्रारंभ करते हैं। यह दृश्य देखकर नंदीवर्धन आदि महानुभाव रोते हुए नेत्र से अपलक निहारते रहते हैं, पश्चात् सब अपने-अपने घर वापस आ जाते हैं। इसके बाद प्रभु पर हुए उपसर्गों की बात शुरु होती है। 52 प्रभूवीर एवं उपसर्ग
SR No.002241
Book TitlePrabhu Veer evam Upsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy