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प्रभुका वर्षीदान
लोकान्तिक देवों की विनती जब जगन्नाथस्वामी दीक्षा का भाव करते हैं तब ब्रह्मलोकवासी नौ प्रकार के लोकान्तिक देव विनम्र भाव से विनती करते हुए कहते हैं कि-'प्रभो, आपके ज्ञान की समानता कौन कर सकता है ? आपके बाल्यकाल की कीर्तिगाथा किन शब्दों में वर्णन किये जायें? हे प्रभो! हमलोग अपना कर्तव्य समझकर स्मरणमात्र कराने के लिये आये हैं कि हे नाथ ! आप प्रव्रज्या स्वीकारें और धर्मतीर्थ की शीघ्र स्थापना करें कि जिससे जगत के जीव मिथ्यात्वभावों से बचकर आपके धर्मतीर्थ के प्रभाव से भवसागर तैर जाय।' इतना कहकर अपना कर्तव्य पूरा करके देव स्वस्थान चले जाते हैं।
हृदयद्रावक अवसर देवों के जाने के बाद समीपवर्ती परिवार द्वारा अनुसरण कराते प्रभु नंदिवर्धन आदि ज्ञानक्षत्रियों की ओर जाते हैं। प्रभु को अपनी ओर आते देखकर वे भी प्रभु के सम्मुख आते हैं, बैठने हेतु श्रेष्ठसिंहासन रखवाते हैं। प्रभु वहां बिराजमान होते हैं, परिवारजन यथाक्रम व्यवस्थित होकर आसन ग्रहण
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प्रभूवीर एवं उपसर्ग