________________
प्रभूवीर एवं उपसर्ग
प्रभूवीर एवं
उपसर्ग
- श्री वीतराग देवों के जीवन-चरित्र बड़े से बड़े मलिन भावों को दहन करनेवाले होते हैं। प्रभु महावीर देव की जीवनकथा आरोह-अवरोह द्वारा खुब ही रोमांचक है। पूर्वभवों के भाव भी भावविभोर बना दे ऐसा है।अंतिम भव का आदर्श तो आदरणीय है। उसमें भी दीक्षास्वीकृति दिन से साढे बारह वर्ष की साधना को वर्णन करने के लिए शब्द कम पड रहे है। परिषह-उपसर्गों का पारायण पामर को भी परम बना दें ऐसा है। तो फिर एक रात्रि में संगम देव के द्वारा किया हुआ तूफान अस्थिसंधियों को गला दे ऐसा है,सभी परिस्थितियों में बिल्कुल अडोल श्री महावीर प्रभु की यशोगाथा संक्षेप में जानने का लाभ उठाने हेतु हम सब के लिये यहअवसर अनमोल है
. अनन्तोपकारी, अनन्तज्ञानी भगवान् श्री अरिहंत परमात्माओं के समान कोई उपकारी हुए नहीं हैं, होनेवाले भी नहीं, परमात्मा श्री अरिहंतदेव अनन्य उपकारी है। कारण कि जीवों को जब अपना खुद का भी होश नहीं होता, तब जीवमात्र के लिये सच्चे कल्याण की कामना के बल से ही वे भगवद्भाव को दिलानेवाला तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन करते हैं, जो परमतारक परमात्मा केतारक धर्मशासन का योग हमे प्राप्त हुआ है।ऐसे श्रमण भगवंत महावीर प्रभु हमारे लिये आसन्नोपकारी है। पूर्व के अरीहंत भगवंतों के समान ही देवाधिदेव हैं। विश्व के सब प्रकार के देव परमात्मा की समानता तो कर सकते नहीं बल्कि उनके चरणरज बनने के लायक भी उनमें गुण नहीं होते। प्रभु के सच्चे सेवक बनने के लिए भी निर्मल सम्यग्दर्शन नामक आत्मगुण अपने में लाना पडता है