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प्रभुवीर का
चारित्र किस लिए?
जलहिजलगलियरयणं व दुलंह पाविऊण मणुयत्तं । पुरिसत्थज्जणकज्जे उज्जमियव्वं बुहजणेणं ॥१॥ तत्थ पुरिसत्थमत्थयचूडामणिविब्भमो परं धम्मो । सो पुण पईदिणसच्छरियसवणओ हवईभव्वाणं ॥२॥ तस्स य धम्मस्स जिणो पणायगो संपयं महावीरो। चरियपि उ तस्सेव य सुणिज्जमाणं तओ जुत्तं ॥३॥
- महावीर चरियम्
भावार्थ : जिस प्रकार समुद्र में गिरा हुआ रत्न मिलना कठिन है, उसी प्रकार इस संसार सागर में मनुष्य भव दुर्लभ है । उसे प्राप्त कर बुद्धिमान मनुष्य को पुरुषार्थ साधन हेतु प्रयत्न करना चाहिए, उसमें भी सभी पुरुषार्थों में सिद्धि दिलानेवाला होने के कारण पुरुषार्थों की मुकुट के समान धर्म करना चाहिए। भव्यजीव प्रतिदिन सत्पुरुषों के चरित्र का श्रवण करें, तभी वहसम्भव हो सकता है।
उस धर्म को कहनेवाले जिनेश्वरदेव हैं। वर्तमान धर्मशासन प्रभु श्री महावीरदेव ने प्रकाशित किया है, अतः उनका चरित्र ही सुनना युक्तिसंगत है।