________________
श्री
परमगुरुदेवश्री के पट्टधररत्न समतासमाधिसाधक सुविशाल गच्छाधिपति पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजयमहोदयसूरीश्वरजी महाराजा के वरदहस्त से वि. सं. २०५८ के माघ शुक्लपक्ष त्रयोदशी की शुभ घड़ी में सम्पन्न हुई। इस अवसर की स्मृति में सिंहगर्जना के स्वामी पू. आचार्य श्री विजयमुक्तिचन्द्र सूरीश्वरजी महाराजा के पट्टविभूषक प्रशमरस पयोनिधिपूर्वदेश तीर्थोद्धारक पू. आ. विजयजयकुंजरसूरीश्वरजी महाराजा के सुविनीत पट्टालंकार तीर्थोद्धारक मार्गदर्शक पू. आ. श्री विजयमुक्तिप्रभसूरीश्वरजी महाराजा के विनीत विनेय पट्टधररत्न प्रसिद्ध प्रवचनकार सूरिमन्त्र संनिष्ठ समाराधक पू. आ. श्री विजय श्रेयांसप्रभसूरीश्वरजी महाराजा के मार्गदर्शन में हमने स्मृतिमन्दिर प्रकाशन का उसी वर्ष प्रारम्भ किया । धीरेधीरे कदम बढै। श्री अरिहन्त परमात्मा की परमकृपा, शासनदेवी की सहायता, गाते हुए हमने आज प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ने का निश्चय किया हुरुदेवों की कृपादृष्टि तथा पूज्यश्री का मार्गदर्शन हमारा सबसे बड़ा सहारा है।
लाडोल के जैनेतर महानुभावों की भावना को ध्यान में रखकर मुक्तिकिरण पाक्षिक का प्रारम्भ किया। हिन्दीभाषी महानुभावों की भावना से इस पाक्षिक का प्रकाशन अब हिन्दी में भी करने का निश्चय किया गया है । अनेक श्रुतभक्तों की भक्ति को ध्यान में रखकर पुस्तक प्रकाशन आदि कार्य में प्रयत्नशील हैं ।
हमारी विविधयोजनाओं को सदा सहयोग मिलता रहा है, और हम आगे बढ़ते जा रहे हैं। पूज्य आचार्यदेव श्री विजयश्रेयांसप्रभसूरीश्वरजी महाराज और उनके शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से सतत मार्गदर्शन मिलता रहा है और आगे भी मिलता रहेगा, यह हमारा आत्मविश्वास है । श्री जिनाज्ञाविरुद्ध या पूज्यश्री के आशयविरुद्ध कुछ भी प्रकाशित न हो, यह हमारा प्रयास है। फिर भी इस सम्बन्धमें आप भी हमारा ध्यानाकर्षण करते रहें, इस सहृदय निवेदन के साथ ।
श्री स्मृतिमन्दिर प्रकाशन
अहमदाबाद