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________________ आदि के द्वारा आचार समृद्धि जीवन्त बनाने योग्य है। आचारों और विचारों का परस्पर सापेक्षता बनी रहे, इसीमें शासन की शोभा बढ़ती है। श्रद्धा की शुद्धि की भांति आचारशुद्धि की उपेक्षा भी करने योग्य नहीं है। प्रतिज्ञा एक चिनगारी है, जो पापों को जलाकर राख डालती है यह याद रखने योग्य है। श्रावस्ती नगरी में जितशत्रु के राज्यकाल में चार-चारचार करोड़ हिरण्य निधान-व्यापार और व्यवसाय में लगानेवाले इस प्रकार बारह करोड़ द्रव्यों का मालिक नन्दिनी पिता और सालिही पिता नामक सद्गृहस्थ चार-चार गोकुल का भी मालिक थे। . . एक की अश्विनी और दूसरे की फाल्गुनी नामक पत्नी थी।भूमिका के. गुणों के रूप में ऊंचा दर्जा धारण करनेवाले वे दोनों महानुभाव लोकमान्य और आदरपात्र व्यक्तित्व के स्वामी थे।ऐसे लोगों के लिए ऐसा कहा जा सकता हैकि तेजी के लिए टकोर ही पर्याप्त होता है। प्रभु महावीरदेव के कोष्ठक उद्यान में समवसरण का समाचार सुनकर समस्त श्रावस्ती नगरी आनन्द के झूले में झूलने लगी। यद्यपि प्रभु का जहाँ भी पदार्पण होता, वहाँ आनन्द का वातावरण छा जाता था, वाणी गुण और अतिशयों से सम्पन्न प्रभु की देशना में ऐसी शक्ति थी, जो नाग को नचाने वाली • बांसुरी की धुन में भी नहीं होती है। भयंकर विषधर के विष को उगलवा देनेवाली प्रभु की वाणी से भव्यात्माओं का मोह विष नष्ट हो गया था । अमोघ देशना के शंखनाद से विवेकी जनों का मनमयूर नृत्य कर उठा था। इन दोनों महानुभावों ने भी यथाक्रम से प्रभु को प्राप्त कर, मिथ्यात्व को दूर कर, सम्यक्त्व सहित अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रत को धारण करनेवाले सुश्रावक हुए।उनकी पत्नियाँ भी उनकी प्रेरणा प्राप्त कर प्रभु के पास से श्रावकोचित व्रतों को स्वीकार किया। आचार समृद्धि के द्वारा गृहवास में रहकर भी वे विपुल निर्जरा के भागी हुए थे । जहाँ पात्रता होती है, वहाँ प्रेरणा अद्भुत फलश्रुति देती है। ज्येष्ठ पुत्र को जिम्मेदारी और साधना पूर्व श्रावकों की भांति चौदह वर्षों के व्रतधारी श्रावक का पर्याय पूर्ण होते ही पन्द्रहवें वर्ष में जिम्मेदारियों को वहन करने के योग्य अपने-अपने ज्येष्ठ ................. प्रभुवीर के दश श्रावक ७१
SR No.002240
Book TitlePrabhu Veer ke Dash Shravak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size21 MB
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