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________________ अन्तिम मरणान्ति संलेखना करने की भावना प्रगट हुई और उसका अमल करने का उसने निर्णय किया।जीवन-मृत्यु से निरपेक्ष होकर साधना में मग्न हो गये ।अध्यवसायों की शुद्धि से महाशतक श्रावक अवधिज्ञानी बने। तीन ओर समुद्र में हजार हजार योजन और रत्नप्रभा पृथ्वी में चौरासी हजार वर्ष की स्थितिवाले लोलुपाच्युतप्रतर तक देखने लगे । साधना साधक को अनेक . प्रकार की सिद्धि देती है। महाशतक का आवेश और शद्धि एक ओर महाशतक की साधना निर्मल बनती जा रही थी, दूसरी ओर रेवती अधिक मदमस्त बनती गई। एक बार पुनः शराब और मांस के सेवन से उन्मत्त होकर अपने दुपट्टे को सरकाती हुई, बाल खोलकर पौषधशाला में आ पहुँची और पहले की भांति जो जी में आया वह बोलने लगी। बारम्बार उसके बोलने पर महाशतक जैसे साधक महानुभाव भी आवेश में आ गए ।आवेश ऐसी वस्तु है तो साधक को भी विचलित कर देती है। उसके बाद अपने अवधिज्ञान का उपयोग कर रेवती से कहा : 'तूसात अहोरात्र में व्याधिसे पीड़ित होकर चौरासी हजार वर्ष के आयुष्यवाली नारकी होनेवाली है।' . यहसुनकर वहघबरा गई। उसका मद गायब हो गया। उसे लगा कि श्रावक क्रोधित हो गये है। उसने मुझे श्राप दिया है, पता नहीं क्या होनेवाला है? वह अपने महल में चली गई। चिन्ता और शोक में डूब गई और सात अहोरात्र में मरकर नरक में पहुँच गई। इतने में भगवान महावीर राजगृहमें पधारे। उन्होंने अपने अन्तेवासी मुख्य शिष्य श्री गौतमस्वामी से कहा : "गौतम ! इस नगर में महाशतक श्रावक ने अन्तिम संलेखना पूर्वक अनशन को स्वीकार किया है। परन्तु आवेश में आकर उसने अत्यन्त कामासक्त अपनी पत्नी को आक्रोश वचन कहे हैं। आहार त्यागी अनशनी को ऐसे वचन सत्य-तथ्य और अद्भुत होते हुए भी नहीं बोलने चाहिए। तू वहाँ जा और महाशतक को पानाहा. . ...............प्रभुवीर के दश श्रावक
SR No.002240
Book TitlePrabhu Veer ke Dash Shravak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size21 MB
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