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________________ उसकी भार्या अग्निमित्रा भी परमश्राविका बनी। इसप्रकार उसे प्रतिबोधहुआ। इसके बाद प्रभु ने अन्यत्र विहार किया । वह जीवाजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता बनकर श्रद्धाभाव में रमण करने लगा। भक्तों के भगवान 'आजीवकमत का त्याग कर सकडालपुत्र निर्ग्रन्थ श्रमणों का उपासक बन गया।' इस समाचार से गोशालक को पुनः उनको स्वमत में स्थापन करने की इच्छा हुई । शिष्य और भक्त परिवार के साथ वह पोलासपुर आया । आजीवकशाला में उपकरण रखकर अपने कुछ शिष्यादि परिवार के साथ बिना आमन्त्रण ही सकडालपुत्र के घर जाने को तैयार हुआ।'कुछ भक्तों के भगवान ऐसे भी होते हैं ना।'एक भक्त यदि निकल जाए, तो उसकी चिन्ता बढ़ जाए, वे भी भगवान कहलाए, यहनाटक नहीं है क्या? .. मिलावट का जमाना .निर्मल सम्यग्दर्शन धारक जीव औचित्यरूप में करने योग्य अवसर को नहीं चूकता । परन्तु जब सम्यक्त्व और मिथ्यात्व के जय-पराजय का प्रश्न उपस्थित हो तो स्व-पर के हित का विचार कर जो उचित हो, वही करे । इसमें उसे मिथ्या लगालगी अथवा मिथ्या अहम् भी किसी प्रकार का विघ्न उपस्थित नहीं करते । सकडालपुत्र ने उसे आते हुए देखकर भी उसका आदर न किया और न ही परिचित के रूप में कोई व्यवहार किया।वह स्थान पर ही बैठा रहा। 'नमस्कार करने योग्य स्थान में नमस्कार करने में समकिती बेंत के समान होता है और अन्य स्थान में वह पत्थर के स्तम्भ के समान होता है। आज तो मार्ग-उन्मार्ग के जय-पराजय का प्रश्न था । अतः सकडालपुत्र स्पष्ट रहा है। औचित्य और व्यवहार के नाम पर आज जो मिलावट प्रवृत्ति छाई हुई है, उस बात को और इस प्रसंग की महिमा का क्या मेल? ... आज प्रभुशासन की बागडोर मिलावट विचारवाले व्यक्तियों के हाथों में पहुँच गई है, ऐसा लगता है। सच्चाई और निर्भयता दोनों में अतिरेक देखने में आता है। प्रभुशासन के प्रति अडिग आस्था के बिना ये बातें समझ में नहीं आ सकती है। .. प्रभु का गुणगान और प्रश्न थका मांदा गोशाला,अब उसकी समझ में नहीं आ रहा कि वह क्या करे ? ....प्रभुवीर के दश श्रावक
SR No.002240
Book TitlePrabhu Veer ke Dash Shravak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size21 MB
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