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________________ जिसका भावी अच्छा होता है, उसके विचार-संकल्प भी अच्छे होते हैं। बोलोग जितना किया है, व करते हैं, इतने में हि बैठे रहने का मन नहीं करते है । आनन्द श्रावक भी धर्मजागरिका करते हुए जो विचार करते है, वह देखने योग्य है। धर्मजागरिका : संकल्प और अमल __"वाणिज्यग्राम नगर में अनेक राजा-मन्त्री और प्रजा तथा अपने परिवार के लिए मैं आलम्बनरूप हूँ , सलाहपात्र हूँ और आधार हूँ।इन कार्यों के विक्षेप के कारण श्रमण भगवान श्री महावीरदेव के द्वारा बतलाए गए धर्म की साधना में पूरा समय नहीं कर पाता है। अतः अब यही श्रेयस्कर है कि कल सुबह सूर्योदय के बाद भोजन सम्मान की तैयारी कराकर मित्र, जाति तथा स्वजन वर्ग की उपस्थिति में अपने ज्येष्ठ पुत्र को कार्यभार सौंपकर उसकी अनुमति लेकर स्वीकृत धर्म का यथाविधिपालन करने में समय व्यतीत करना चाहिए। ऐसा संकल्प करता है।" और प्रातःकाल उसी प्रकार सबकी उपस्थिति में सबको भोजन सम्मान कराकर ज्येष्ठ पुत्र को सारा कारोबार सौंपकर पुत्र को और स्वजनों को उचित हितवचन कहकर उनकी अनुमतिपूर्वक साधना हेतु लिए गए संकल्प की घोषणा करता है और कहता है कि , 'अब आज से संसार से सम्बन्धित कोई भी बात मुझे नहीं बतलाई जाए। नपूछी जाए। और मेरे लिए आहार-पानी आदि का प्रबन्ध नहीं करे।' फिर घर से निकलकर कोल्लाक सन्निवेश में जाकर वहाँ की अपनी पौषधशाला.में विधिपूर्वक प्रवेश कर पौषधशाला की स्वयं प्रमार्जना करता है। लघुनीति और बड़ीनीति की भूमि का प्रमार्जन करता है। .. दर्भसंथारा का प्रमार्जन करता है। संथारा.पर आरूढ़ होता है। और श्रमण भगवान महावीरदेव के पास स्वीकृत श्रावकधर्म की विधिपूर्वक आराधना का प्रारम्भ करता है। श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ अभिग्रह विशेष के रूप में जानी जाती श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का अब आनन्द श्रावक ने विधिपूर्वक प्रारम्भ किया है। उसका सामान्य स्वरूप, जो शास्त्रों में वर्णित किया गया है, वहहम देखते हैं। प्रभुवीर के दश श्रावक.............. १८ १८
SR No.002240
Book TitlePrabhu Veer ke Dash Shravak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size21 MB
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