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देवतामूर्ति-प्रकरणम् rides a corpse. One right hand is in the Varad position, while the other two grasp a spear (trident) (78), and a karttika sword respectively. Two of her left hands hold a noose and a patra and third is in the Abhay mode.
Thus have been described the forms and images of the Mother-goddcsscs (matres). (79).
मातृदेवी का आयतन
भैरवं कारयेत् तत्र नृत्यमानं विकारणम् । गणेशमादौ कर्त्तव्यमन्ते कुर्याच्च भैरवम् ॥८० ॥ मातृणां मध्यंत: कार्या पंक्तिश्च चण्डिकादयः । वीरेश्वरश्च भगवान् वृषारूढो धनुर्धरः ॥८१ ॥ वीणां हस्ते त्रिशूलं च बाणं चैव प्रकारयेत् ।
वीरेश्वरस्य रूपं तु मातृणामग्रतो भवेत् ॥८२ ॥ . .नाच करता हुआ भैरव मातृ देवियों की पंक्ति के अन्त में और गणेश को आदि में स्थापना । मातृ देवियों के मध्य में चण्डिका आदि देवियों की स्थापना करना। वीरेश्वर भगवान् बैल की सवारी करने वाला, तथा धनुष, वीणा,
त्रिशूल और बाण को धारण करने वाला है। वीरेश्वर की मातृदेवियों के सामने ..' स्थापना करना।
Install a dancing Bhairav at the end of the row of the mother-goddesses and Ganesh at the beginning (80), thus placing the idols of Chandika and the other matres between Ganesh and Bhairav in a single row.
Depict Bhagwan Veereshwar riding a bull and holding a bow (81), the musical instrument Veena, a trident and an arrow. The statue of Veereshwar should be installed in front of the mother-goddesses. (82).