________________
देवतामूर्ति-प्रकरणम्
के विस्तार के साथ मुर्गे के अंडें जैसा, लिङ्ग के विस्तार के तीन भाग करके एक भाग का अर्द्धचन्द्र के जैसा और आठ भाग करके साढ़े तीन भाग बुदबुद के आधार का शिर है ।
178
If the Siva-linga is divided into 8 portions, the Chhatra (umbrella or top portion ) will be 221⁄2 parts and the remaining 6 parts will be Trapushambha. Half the extent (vistaar) of the linga is like a fowl's egg - Kukkutandam (ie. rounded), and is considered the upper or shira (head) portion. (99).
When the extent of the linga is divided into 3 parts one part is (regarded as) a crescent moon-ardhachandra, and when divided in 8 parts 31⁄2 parts is like the image of Budbud. (100).
अशुभ लिङ्ग लक्षण
ऊर्ध्वाधोमध्यहीनं यल्लिङ्गं नाशकरं भवेत् ।
दीर्घ वा संधिरेखाभिर्युक्तं काकपदादिकैः ॥ १०१ ॥
जो शिवलिङ्ग ऊपर, नीचे और मध्य में मान हीन हो तो नाशकारक है । एवं शिवलिङ्ग की ऊँचाई में सांध, रेखा या कौएँ के पैर सदृश चिह्न दृष्टि में आवे ऐसा शिवलिङ्ग नाश कारक मानना ।
·
A Siva-linga that is lesser than the scale in its upper, lower and central portions causes destruction.
One that has sandhi- rekhas ( literally, lines that join; also a hole; or a crevice), or marks resembling crows feet along its length yields the same result. (101).
आय आदि की शुद्धि के लिये लिङ्ग में न्यूनाधिकता -
एकद्वित्र्यङ्गुला वृद्धिर्हानिरायादिशुद्धये ।
आय व्यय आदि की शुद्धि के लिये शिवलिङ्ग की ऊँचाई में एक, दो या तीन अङ्गुल की वृद्धि अथवा हानि कर सकते हैं ।
An addition or subtraction of onc, or two, or three angula
·