________________
168
देवतामूर्ति-प्रकरणम् सुवक्त्र, उमातेज, विश्वेश्वर, तीन नेत्र वाला, त्र्यम्बक और महाकाल ये पाषाणलिङ्ग के (चौतीस) नाम हैं।
The names of the different stone Siva-lingas are as follows:Shribhava, Udbhava, and Bhava (71b), Bhayhrita, Pashaharan, Papahasteja, Mahateja, Parapara and Maheshwar (72), Shekhar, Siva, Shant, Mahahaladkar, Rudrateja, Sadatmagya, Vamadeva, Aghor and Ishvar (73), Tatpurush, Ishan, Mrityunjaya, Vijay, Kiranaksha, Mahorastra, Shreekantth, and Munivardhan 174), and Pundareek, Suvaktra, Umateja, Vishveshwar, Trineytra, Trayambak and Mahakala. (75). प्रासाद मान से शिवलिङ्ग का मान
हस्तमानं भवेल्लिङ्गं वेदहस्ते सुरालये। ज्येष्ठलिङ्गं तु वेदांशे षट्त्रिंशे नवहस्तकम् ॥ ७६ ॥ :, पञ्चादिभूतवेदान्ते प्रासादे हस्तसंख्यया। मध्यमं पञ्चमांशेन हस्तादिनवहस्तकम् ॥ ७७ ॥ ऋत्वादियुगतत्त्वान्ते हस्तसंख्या शिवालये। षडंशेन प्रकर्त्तव्यं हस्तादि नवहस्तकम् ॥ ७८ ॥ कनिष्ठ ज्येष्ठ लिङ्गेषु मध्यमामध्यमेषु च। . प्रासादा: कन्यसे ज्येष्ठाः सीमामानमिदं स्मृतम् ॥७९॥
चार हाथ के प्रासाद में एक हाथ का शिवलिङ्ग स्थापन करना। प्रासाद का चौथा भाग शिवलिङ्ग करना यह ज्येष्ठ मान का शिवलिङ्ग है, इस प्रकार छत्तीस गज के प्रासाद में नव हाथ का शिवलिङ्ग होता है। पांच हाथ से पैंतालीस हाथ तक के प्रासाद में पांचवें भाग का शिवलिङ्ग करना यह मध्यम मान है। इस मान से नव हाथ के शिवलिङ्ग के लिये पैतालीस हाथ का प्रासाद होता है। छः हाथ से चौवन हाथ तक के प्रासाद में छठे भाग का शिवलिङ्ग करना यह कनिष्ठ मान का है। इस मान से नव हाथ के शिवलिङ्ग के लिये चौवन हाथ का प्रासाद होता है। इस हिसाब से ज्येष्ठ मान के लिङ्ग का. प्रासाद कनिष्ठ,