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________________ - Uvavaiya Suttam Sa. 15. कई एक ज्ञान केवलज्ञान के धारक थे। कई श्रमण मनोबली-मनः स्थिरता के धारक थे, कई वचनबली-प्रतिज्ञात आशय के निर्वाहक या. परपक्ष को क्षुभित करने में सक्षम वचन शक्ति के धारी, कई कायबलीक्षुधा, पिपासा, उष्णता, शैत्य आदि प्रतिकूल' शारीरिक स्थितियों को अग्लान भाव से सहन करते रहने की कायिक-शक्ति के धारक थे। कई मन से अपकार और उपकार करने का सामर्थ्य रखते थे, कई वचन द्वारा अपकार एवं उपकार करने में समर्थ थे, कई शरीर द्वारा अपकार और उपकार करने में सक्षम थे। कई श्रमण-निर्ग्रन्थ अपने खंखार'सें रोग मिटाने की शक्ति से युक्त थे, कई श्रमण शरीर के मैल, मूत्र विन्दु, विष्ठा तथा हस्त आदि के स्पर्श से रोग मिटा देने की विशेष क्षमता लिये हुए थे, कई श्रमण ऐसे थे, जिनके बाल, नाखून, रोम, मल आदि सभी औषधि रूप थे-वे इनसे रोग मिटा देने की शक्ति प्राप्त किये हुए थे। ये लब्धि जन्य विशेषताएँ थीं। कई श्रमण ऐसे थे कोष्ठ बुद्धि-कुशूल या कोठार में भरे हुए सुरक्षित धान्य की तरह प्राप्त हुए सूत्रार्थ को अपने में ज्यों का त्यों धारण करने में समर्थ बुद्धि वाले थे; कई बीजबुद्धि-विशालकाय वृक्ष को उत्पन्न करने वाले बीज के समान विस्तृत, विविध अर्थ प्रस्तुत करने वाली बुद्धि से युक्त थे, कई श्रमण पटबुद्धि-विशिष्ट वक्ताओं रूपी वनस्पति से प्रस्फुटित विभिन्न-प्रभूत सूत्रार्थ रूपी फूलों एवं फलों को संग्रहित करने में समर्थ बुद्धिवाले थे। कई श्रमण पदानुसारी-सूत्र के एक पद के ज्ञात होने पर उस सूत्र के अनुरूप सैंकड़ों पदों का अनुसरण करने की बुद्धि लिये हुए थे। कई श्रमण संभिन्न-श्रोतां-बहुत प्रकार के भिन्न-भिन्न शब्दों को, जो अलग-अलग रूप से बोले जा रहे हों, उन्हें, एक साथ सुनकर स्वायत्त करने की विशेष क्षमता लिये हुए थे, अथवा सभी इन्द्रियाँ शब्द ग्रहण करने में समर्थ थीं। श्रोत्र इन्द्रिय के अतिरिक्त जिनकी अन्य इन्द्रियों में शब्दग्राहिता की विशेषता थी। कई दूध के समान सुमधुर, श्रोताओं के श्रोत्र-इन्द्रिय को सुहावने लगने वाले वचन बोलते थे, कई श्रमणों के वचन शहद के समान समस्त दोषों को मिटाने निमित्त रूप थे तथा आह्लादजनक थे। कई श्रमण अपने वचनों द्वारा घृत के सदृश स्निग्धता-स्नेह सम्पादित करने वाले थे। कई श्रमण ऐसे थे, जो जिस घर से भिक्षा लेकर आ जाए, उस घर की अवशेष भोज्य-सामग्री जब तक भिक्षादाता स्वयं भोजन न कर ले, तब तक हजारों-लाखों व्यक्तियों को भोजन करा देने के पश्चात् भी समाप्त न
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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