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- Uvavaiya Sattam Sh: 5 वासंतियलयाहिं अइमुत्तयलयाहिं कुंदलयाहिं सामलयाहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। ताओ णं पउमलयाओ णिच्चं कुसुमियाओ जाव...वडिंसयधरोओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ ॥४॥
. वे तिलक, नन्दिवृक्ष आदि पादप अन्य बहुत सी पद्म-लताओं, नाग लताओं, अशोक लताओं, चम्पक लताओं, सहकार लताओं, वन ( पीलुक) लताओं, बासन्ती लताओं, अतिमुक्तक लताओं, कुन्द लताओं और श्याम लताओं से सब ओर-चारों ओर से घिरे हुए थे। वे पद्म आदि लताएं हमेशा ( सब ऋतुओं में ) फूलती थीं ( मंजरियों, पत्तों, फूलों के गुच्छों, गुल्मों तथा पत्तों के गुच्छों से युक्त थीं, वे समश्रेणिक -एक कतार में तथा युगल-दो-दो की जोड़ी के रूप में सदा अवस्थित थीं, यों विविध प्रकार से अपनी-अपनी विशेषताएँ लिये हुए वे लताएँ अपनी लुम्बियों तथा मंजरियों के रूप में मानों शिरोभूषण सेहरें धारण किये रहती थीं )। वे चित्त को प्रसन्न करने वाला, देखने योग्य, मन को अपने में रमा लेने वाली, तथा मन में बस जाने वाली थीं ॥४॥
Using the aforesaid trees as their support, and covering them from all sides, there had grown sundry creepers. They were : padma, nāga, ayoka, campaka, Sahakāra, vana (piluka), vāsanti, atimuktaka, kunda and shyama (priyangu). These creepers were always and all the while decorated with tiaralike buds and flowers, till they were delightful to the eyes, pleasant to the mind, immensely attracting. 4
शिलापट्टक वर्णन
The Stone Slab
तस्स णं असोगवरपायवस्स हेट्ठा ईसि खंधसमल्लीणे एत्थ णं महं एक्के पुढवि-सिलापट्टए पण्णत्ते । विक्खंभायाम-उस्सेह-सुप्पमाणे किण्हे अंजण-घण-किवाण-कुवलय-हलधर-कोसेज्जागास-केस-कज्जलंगी-खंजण-सिंगभेद-रिट्ठय-जंबूफल-असणक-सणबंधण-णीलुप्पल-पत्त -