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________________ 10 Uvavaiya Suttam Su. 3 the forest as well as its glitter were black, blue and green, cool and bright, and exciting. The branches of the trees were so thickly interwoven that the forest had shade everywhere. The whole thing looked as delightful as a vast cloud. ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंघमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमंतो फलमंतो बीयमंतो अणुपुव्व-सुजायरुइल - वट्टभाव-परिणया एक्कखंधा अणेगसाला अणेग साह-प्पसाहविडिमा अग-नर-वाम-सुप्पसारिअ अग्गेज्म- घण- विउल-बद्ध-खंघा अच्छिद्द पत्ता अविरलपत्ता अवाईणपत्ता अणईअपत्ता निद्धूय - जरढपंडु-पत्ता-णव-हरिय-भिसंत-पत्त-भारंधकार - गंभीर - दरिसणिज्जा उवणिग्गय-णव- तरुण-पत्त-पल्लव- कोमल - उज्जल - चलंत - किसलय- सुकुमाल - 'पवाल - सोहिय- वरंकुरग्ग- सिहरा । उस वनखण्ड के वृक्ष मूल - जड़ों का ऊपरी भाग, कन्द-भीतरी भाग ( जहाँ से जड़ें फूटती हैं ), स्कन्ध - तनें, छाल, शाखा, प्रवाल- पत्तों की अंकुरित अवस्था, पत्र, पुष्प, फल और बीज से सम्पन्न थे । वे क्रमश: आनुपातिक रूप में सुन्दर और गोलाकार में परिणत हो गये थे । अर्थात् वे विकसित थे। उनके एक-एक स्कन्ध ( तना ) और अनेक शाखाएँ थीं । अनेक शाखाओं और प्रशाखाओं के मध्य भाग विस्तार लिये हुए थे । अनेक व्यक्तिओं द्वारा फैलाई हुई भुजाओं से भी न पकड़े जा सकते थेघेरे नहीं जा सकते थे, ऐसे उनके संघन, विस्तृत और सुघड़ तने थे । उनके पत्ते छिद्ररहित, घने अर्थात् एक दूसरे पर छाये हुए, अधोमुख अर्थात् नीचे की ओर लटकते हुए, और उपद्रव ( चूहे, टिड्डी आदि ) से रहित थे। उनके पुराने - जर्जर, पीले पत्ते झड़ गये थे । नये, हरे और चमकीले पत्तों के भार ( सघनता ) से वहाँ अन्धेरा और गम्भीरता दर्शनीय थी, दिखाई देती थी । निकलते हुए नवीन, परिपुष्ट पत्तों, ताम्र वर्ण के कोमल, उज्ज्वल, हिलते हुए किसलयों ( पूरी तरह से नहीं पके हुए पत्तों ), ताम्र वर्ण के नये पत्तों से, उन वृक्षों के उच्च शिखर ( अग्रभाग ) शोभित थे ।
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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