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________________ ( iv ) "समणसुत्तं की भूमिका पढ़ते-पढ़ते ऐसा लगता ह, जैसे मन के नयन खुल रहे हैं।" ' -जनार्दन राय ना र उपकुलपति, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर पुस्तक : सचित्र कल्पसूत्र-संपादक : म० विनय सागर मूल्य-२००.०० "It is a unique work of artistry in which the noble spirit of Jainism is revealed.” -Acharya Chitrabhanu "संपादन-प्रकाशन अद्भुत है।" -आचार्य पद्मसागर सूरि "....कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अब तक के अनुदित, सम्पादित व प्रकाशित कल्पसूत्रों में यह प्रथम कोटि का है।' . -डा० मुनि नगराजजी "कल्पसूत्र का वैसे तो अनेक स्थानों से प्रकाशन हआ है और वे जनता द्वारा समादरणीय भी हुए हैं, किन्तु 'प्राकृत-भारती' जयपुर द्वारा प्रस्तुत प्रकाशन का अपने में एक विशिष्ट रूप है। शुद्ध मूल पाठ, संक्षिप्त किन्तु भावस्पर्शी शब्दानुसारी हिन्दी अनुवाद, साथ ही अंग्रेजी भाषा में रूपान्तर। बीच-बीच में यथास्थान हस्तलिखित प्राचीन प्रतियों पर से लिये गए भावपूर्ण रंगीन चित्रों का अंकन भी प्रस्तुत संस्करण की अपनी एक विशेषता है।" --मुनि समदर्शी, श्री अमर भारतीः
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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