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उववाइय सुत्तं सू० ४१
281 जोगोवहिया कम्मंता परपाणपरियावणकरा कज्जति तओवि पडिविरया जावज्जीवाए।
सर्वत:-सब प्रकार के आरंभ-समारंभ से प्रतिविरत–निवृत्त हो चुके हैं, करने एवं कराने से सर्वथा निवृत होते हैं, पकाने तथा पकवाने से सम्पूर्णतः निवृत्त होते हैं, वे सम्पूर्ण रूप में कूटने-पीटने तजित करनेकड़े वचनों द्वारा भर्त्सना करने, ताड़ना करने, थप्पड़ आदि के द्वारा प्रताड़ित करने, वध-प्राण लेने, बन्ध-रस्सी आदि से बांधने, परिक्लेश-किसी को कष्ट देने से प्रतिविरत-निवृत होते हैं। वे स्नान, मर्दन, वर्णक, विलेपन, शब्द, स्पश, रस, रूप, गन्ध, माला तथा अलंकार से सम्पूर्णतः प्रतिविरतनिवृत्त होते हैं इसी प्रकार और भी पापात्मक प्रवृत्तियों से युक्त, कपटपूर्ण प्रपंच युक्त, दूसरों के प्राणों को कष्ट–व्यथा पहुंचाने वाले कमांशों को करते हैं। उनसे भी वे जीवन भर के लिये निवृत्त होते हैं।
They are desisted in all respects from slaughter, from torturing others and ordering others to do the same, from cooking and ordering others to cook, from beating and hurting and ordering others to do the same, from abusing, beating, killing, tying, causing grief or obstruction, desisted in all respects from bath, rubbing, painting, besmearing, from sound, touch, taste, shape and smell, from garlands and ornaments, and they have wholly separated themselves from those who indulge in torturing others and in activities involving deception, cunning, and this for whole life.
से जहाणामए अणगारा भवंति-ईरियासमिया भासासमिया ... जाव...इणमेव णिग्गंथं पावयणं पुरओकाउं विहरंति । तेसि णं
भगवंताणं एएणं विहारेणं विहरमाणाणं अत्थेगइयाणं अणंते जाव... केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जइ ।